Pythagoras Biography in Hindi पाइथागोरस की जीवनी हिंदी में 2022

पाइथागोरस की जीवनी हिंदी (Pythagoras Biography in Hindi) में पाइथागोरस प्राचीन ग्रीस के एक महान गणितज्ञ और दार्शनिक थे। गणित के क्षेत्र में वे आज भी ‘पाइथागोरस प्रमेय’ के लिए प्रसिद्ध हैं। हालाँकि, गणित में उनके योगदान के अलावा, पाइथागोरस को पश्चिम के इतिहास में एक संगीतकार, रहस्यवादी, वैज्ञानिक और धार्मिक आंदोलन के संस्थापक के रूप में भी सम्मानित किया जाता है।

यह ईसा पूर्व छठी शताब्दी में धार्मिक शिक्षण और दर्शन में उनके महत्वपूर्ण योगदान के कारण है। उन्होंने पाइथागोरस पंथ की स्थापना की, जिसकी गतिविधियाँ बहुत गुप्त थीं।

Pythagoras Biography in Hindi पाइथागोरस की जीवनी हिंदी

पूरा नाम (Name)पाइथागोरस (Pythagoras)
जन्म (Birthday)571 BC, सामोस, यूनान
पिता (Father Name)मनेसार्चस (Mnesarchus)
माता (Mother Name)पयिथिअस (Pythais)
पत्नी का नाम (Wife Name)थेनो(Theano)
बच्चे (Children)मयिया, डामो, टेलिगास और अरिग्रोत
मृत्यु (Death)570 ईसा पूर्व, पेतापोंतम
शिक्षा (Education)पैथोगोरियंस
कार्य और उपलब्धि (Work and Award)‘पाइथागोरस का प्रमेय’ की देन
राष्ट्रीयता (Nationality)यूनानी
Pythagoras Biography in Hindi

पाइथागोरस का जन्म और प्रारंभिक जीवन

पाइथागोरस का जन्म 570 ईसा पूर्व में पूर्वी ईजियन में एक ग्रीक द्वीप समोस पर हुआ था। ऐसा माना जाता है कि उनकी मां पाइथियास उस द्वीप की मूल निवासी थीं और पिता मानेसरकस लेबनान में स्थित टायर के व्यापारी थे, जो रत्नों का व्यापार करते थे। यह भी कहा जाता है कि पाइथागोरस के भी दो या तीन भाई-बहन थे।

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पाइथागोरस ने अपना अधिकांश बचपन समोस में बिताया। जब वह बड़ा हुआ तो अपने पिता के साथ बिजनेस ट्रिप पर जाने लगा। इस दौरान पाइथागोरस के पिता उसे सोर के पास ले गए और सीरिया के विद्वानों से वहीं पढ़ाने लगे। ऐसा माना जाता है कि पाइथागोरस ने इस अवधि के दौरान इटली का भी दौरा किया था।

हालाँकि, पाइथागोरस की शिक्षा का क्रम उनके विभिन्न स्थानों की यात्राओं के दौरान जारी रहा। उन्होंने होमर की कविता के साथ-साथ वीणा के नाटकों का भी अध्ययन किया। पाइथागोरस ने सीरिया के विद्वानों से शिक्षा लेने के अलावा शालिदिया के विद्वानों को अपना गुरु भी बनाया।

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सेरेस के फेरेसीडेस पाइथागोरस के पहले शिक्षक थे, जिनसे उन्होंने दर्शनशास्त्र सीखा। अठारह वर्ष की आयु में, पाइथागोरस ने मिलेट्स की यात्रा की, जहाँ उनकी मुलाकात गणित और खगोल विज्ञान के विद्वान थेल्स से हुई।

हालाँकि उस समय तक थेल्स बहुत बूढ़े हो चुके थे और पढ़ाने की स्थिति में नहीं थे, पाइथागोरस उनकी मुलाकात से बहुत प्रभावित हुए और उनकी रुचि विज्ञान, गणित और अंतरिक्ष विज्ञान के अध्ययन में हो गई। अपनी उत्सुकता और जिज्ञासा को आकार देने के लिए उन्होंने थेल्स के विद्वान शिष्य अनिमिन्दर को अपना गुरु बनाया और गणित का गहन अध्ययन करने लगे।

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पाइथागोरस निजी जीवन

पाइथागोरस का विवाह थीनो नाम की महिला से हुआ था। माना जाता है कि ऑर्फ़िक पंथ के विश्वासी थियो, क्रोटन के स्कूल या मठ में उनके पहले शिष्य थे। थेनो एक दार्शनिक थे और उन्होंने ‘ऑन सदाचार’ और ‘डॉक्ट्रिन ऑफ गोल्डन मीन’ किताबें लिखीं। विभिन्न उपलब्ध स्रोतों से यह ज्ञात होता है कि पाइथागोरस का एक पुत्र था जिसका नाम टेलीगास था। एक बेटे के अलावा, उनकी तीन बेटियां भी थीं जिनका नाम दामो, अरिग्नोट और मैया था। कुछ सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार उनके बच्चों की कुल संख्या सात थी।

पाइथागोरस की दूसरी बेटी, अरिग्नॉट भी एक विद्वान महिला थीं, जिन्होंने ‘द राइट्स ऑफ डायोनिसस’ और ‘सेक्रेड डिस्कोर्स’ नामक किताबें लिखीं। उनकी तीसरी बेटी मैया की शादी क्रोटन के मशहूर पहलवान मिलो से हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि मिलो पाइथागोरस के साथ रहता था और एक बार एक दुर्घटना में पाइथागोरस की जान बचाई थी।

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पाइथागोरस की मृत्यु

कहा जाता है कि अन्य बुद्धिजीवियों की तरह पाइथागोरस भी कुंद था, जिससे उसने अपने कई दुश्मन बना लिए थे। इन दुश्मनों में से एक ने एक बार पाइथागोरस के खिलाफ कुछ लोगों को उकसाया और उस घर में आग लगा दी जहां वह रहता था। लेकिन इस साजिश में वह बच गया।

इसके बाद वह क्रोटन को छोड़कर मेटापोंटम चले गए। यहीं पर 495 ईसा पूर्व में 90 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई थी। यद्यपि उनकी मृत्यु का कारण अभी भी अज्ञात है, कहा जाता है कि सिरैक्यूज़ के लोगों द्वारा एग्रीएंटम और सिरैक्यूज़ समूह के बीच संघर्ष में उनकी हत्या कर दी गई थी।

Pythagoras Biography in Hindi

Pythagoras के जीवन कि कहानी

Pythagoras Biography in Hindi:- पाइथागोरस जैसी प्रसिद्धि पाइथागोरस के सिद्धान्त को मिली , वैसी गणित के किसी मौलिक नियम को शायद ही मिली हो । इस सिद्धान्त को सबसे पहले मिस्रवासी अमल में लाए । परन्तु उनके पास इसके सही होने का कोई प्रमाण नहीं था । इसलिए इस नियम की सत्यता को गणित के अनुसार सर्वप्रथम प्रमाणित करने का श्रेय पाइथागोरस को दिया जाता है ।

पाइथागोरस का सिद्धान्त यह प्रमाणित करता है कि समकोण त्रिभुज की दोनों छोटी भुजाओं पर बनाए गए वर्गों के क्षेत्रफल का योग , उसी त्रिभुज की तीसरी भुजा के कर्ण पर बनाए गए वर्ग के क्षेत्रफल के बराबर होता है । समकोण त्रिभुज का एक कोण 90 ° का होता है । यह सिद्धान्त समस्त उद्योग विद्या का आधार है ।

नाप – तोल के इतिहास में महत्त्वपूर्ण वह समकोण त्रिभुज है , जिसकी एक भुजा की लम्बाई यदि 3 इंच हो और दूसरी भुजा की 4 इंच तो इस त्रिभुज की समकोण के सामने वाली तीसरी भुजा ( जिसे हाईपोटेनस अथवा कर्ण कहते हैं ) 5 इंच लम्बी होगी । आगे चित्र में यही बात और भी स्पष्ट हो जाती है । दोनों भुजाओं पर बने छोटे – छोटे वर्गों की संख्या क्रमश : 9 और 16 है , जब कि बड़ी भुजा पर बने उस किस्म के वर्ग संख्या में 25 हैं । अर्थात् 3 X 3 धन 4×4 बराबर है 5X5 । यह नियम किसी भी समकोण त्रिभुज के लिए सही उतरेगा ।

ज्यामिति में पाइथागोरस का यह सिद्धान्त इतना मनोरंजक सिद्ध हुआ कि उसकी सत्यता के प्रमाण में एक सौ से अधिक सबूत दिए जा चुके हैं । इनमें अमरीका के राष्ट्रपति गारफोल्ड की एक मौलिक सिद्धि भी शामिल है । पाइथागोरस का जन्म ग्रीस के सामोस द्वीप में ईसा से लगभग 582 साल पहले हुआ था । उसके व्यक्तिगत जीवन के विषय में हमें कुछ भी ज्ञात नहीं है । सम्भवतः उसने शुमध्य सागर के उस पार मित्र देश में जाकर वहां के विद्या – केन्द्रों का निरीक्षण किया था ।

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520 ई पू मेाचारीपालीडीज ने पायागोरस को ग्रीस देश से निकाल दिया तब वह इटली के दक्षिण में चला गया। वहां अपने अनुयायियों के साथ उसने एक सम्प्रदाय की नींव डाली । यह सम्प्रदाय एक ऐसा मण्डल था , जिसकी आगजन धर्म और दर्शन के अध्ययन में थी । इस मण्डल के सभी सदस्य धनी – मानी परिवारों के कुलीन व्यक्ति थे । उन्होंने मण्डल की कार्यवाही को गुप्त रखने की शपथ की थी।

इस परिणाम यह हुआ था कि आम जनता इस मण्डल के सदस्यों की सन्देह की दृष्टि से देव थी । पाइथागोरस और उसके अनुयायियों का विचार था कि मनुष्य की आत्मा अमर है औ वह बार – बार पृथ्वी पर आती है तथा विभिन्न लोगों में और विभिन्न देशों में जन्म लेती है । पाइथागोरस का विश्वास था कि मनुष्यों और पशुओं में कुछ स्वाभाविक है । अतः मनुष्य – आत्मा किसी पशु में भी उतर सकती है । परन्तु यदि मनुष्य सात्विक जीवन बिताए तो इस संकट से बच सकता है।

इस विश्वास के परिणामस्वरूप प्रातुमण्डल के नियमों में कुछ कठोरता आ गई थी आत्मसंयम , आन्तरिक पवित्रता , मिताहार और आशाकारिता- ये पाइथागोरस के सम्प्रदाय के प्रतीक थे । होता पाइथागोरस के शिष्यों ने ही कोपरनिकस को पहले – पहल यह संकेत दिया था कि ब्रह्माण्ड का केन्द्र सूर्य है । पाइथागोरस का विश्वास था कि ग्रह – नक्षत्रों की परिक्रमा का पथ वृत्ताकार ही होना चाहिए , क्योंकि उसके मतानुसार परिक्रमा का सर्वश्रेष्ठ पथ वृत्त के सिवाय दूसरा नहीं हो सकता।

उसकी मान्यता थी कि पृथ्वी , तारे , नक्षत्र , ब्रह्माण्ड – सभी वृत्ताकार हैं , क्योंकि स्थूल वस्तुओं में वृत्त ही सबसे अधिक परिपक्व ढोग आकार भ्रातृमण्डल में नक्षत्रविद्या के पारखी और गणितज्ञ तो थे ही , जीवविद्याविद् और शरीरशास्त्री भी थे । इन शरीरवैज्ञानिकों ने खोज करके दृष्टि तंत्रिका ( आप्टिक नव्ज ) तथा ‘ त्रिपथगा ‘ ( यूस्टेकियन ट्यूब्ज ) का पता लगा लिया था।

पाइथागोरस के शिष्य अपने गणित सम्बन्धी ज्ञान को संगीत में भी उतार लाए । संगीत का स्वर मूलतः एक शुद्ध कर्णप्रिय ध्वनि होता है । कुछ तार – स्वर ऐसे होते हैं , जो एक साथ बजने पर मधुर लगते हैं , जबकि वे ही कुछ अन्य स्वरों के साथ बजने पर कटु लगते हैं । पाइथागोरस ने इसका कारण ढूंढ निकाला कि सितार के तारों की लम्बाई जब एक – दूसरे के साथ सरल अनुपात में होती है , तब उन्हें एक साथ छेड़ने से उठनेवाली आवाज़ में एक प्रकार की मधुर एकरसता होती है।

उदाहरण के लिए , यदि एक तार दूसरे तार से दुगना लम्बा हो और दोनों की मुटाई और तनाव एक – सा हो , तो उन्हें एकसाथ छेड़ने पर मधुर ध्वनि निस्सृत होगी । यही स्थिति उस समय भी रहेगी जब तारों की लम्बाई का अनुपात 2 : 3 अथवा 4 : 3 हो । संगीत की शब्दावली में 2 : 1 का अर्थ उस अष्टक से है , जो वाद्ययंत्र की कुंजियों को जोड़ता है । 5 : 2 शुद्ध पंचम है 4 : 3 चतुर्थ शुद्ध स्वर है । संगीतज्ञ स्वरों के इस मेल को शुद्धतम ध्वनियां मानते हैं।

दो सौ वर्ष बाद एरिस्टॉटल ( अरस्तू ) ने पाइथागोरियन परम्परा के बारे में कहा था , ” इन लोगों ने अपना जीवन ही गणित को समर्पित कर दिया था और इन्हींके कारण गणित की प्रगति सम्भव हुई ।

इस वातावरण में पलते और बढ़ते हुए इनका विचार यह बन गया था कि संसार की हरएक वस्तु गणित के ही सिद्धान्त पर आधारित होनी चाहिए । ” आज का वैज्ञानिक विश्व के गणितीय सूत्रों की मान्यताओं को आबद्ध करने में लगे हुए हैं ।

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पाइथागोरस प्रमेय कैसे निकाले?

पाइथागोरस प्रमेय का प्रमाण: एक समकोण त्रिभुज में, आधार और लंब एक दूसरे से 90 डिग्री का कोण बनाते हैं। इसलिए, पाइथागोरस प्रमेय के अनुसार, “कर्ण का वर्ग आधार के वर्ग और लंबवत के वर्ग के योग के बराबर होता है।”

एक पाइथागोरस त्रिक क्या होगा?

इस प्रमेय के अनुसार, एक समकोण त्रिभुज में कर्ण का वर्ग आधार भुजा और लंब भुजा के वर्गों के योग के बराबर होता है। पाइथागोरस प्रमेय पाइथागोरस प्रमेय का उपयोग एक समकोण त्रिभुज की कोई भी भुजा ज्ञात करने के लिए किया जाता है जब शेष दो भुजाएँ दी गई हों।