मैरी क्यूरी बायोग्राफी इन हिन्दी

मैरी क्यूरी बायोग्राफी इन हिन्दी नमस्कार दोस्तों स्वागत हैं पक हमारे इस नए लेख में आज हम आपके लिए मैरी क्यूरी बायोग्राफी इन हिन्दी लाए है। अगर आप मैरी क्यूरी को जाते है तो कृपया यह लेख पूरा पढ़ें।

कक्षा का वातावरण सहमा हुआ – सा था । एक खुर्राट रूसी निरीक्षक बैठा सभी को घूर रहा था । वह देखने आया था कि पोलैंड का इतिहास और पोलिश भाषा की पढ़ाई चोरी – चोरी तो नहीं होती ? उन दिनों पोलैंड पर रूस के जारशाही का शासन था । लेकिन पोलिश जनता गुलामी की जंजीरों को तोड़ देना चाहती थी । इसलिए प्रतिबंधों भी कक्षाओं में चोरी छिपे पोलिश भाषा और पोलैंड का इतिहास पढ़ाया के बावजूद जाता था । 

उस दिन भी पोलैंड का इतिहास पढ़ाया जा रहा था । अचानक धीमी आवाज में घंटी बजी खतरा समझकर तत्काल वे पुस्तकें इकट्ठी की गईं । दो छात्राएँ उन्हें लेकर कहीं छिपा आई और वापस कक्षा में आकर इस तरह बैठ गई जैसे कुछ हुआ ही न हो । रूसी निरीक्षक ने आकर कक्षा को देखा । 

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फिर एक लड़की से पूछा ” पिछले पाँच जारों के नाम बताओ जिन्होंने हमारे पवित्र रूस पर शासन किया है ? ” उस लड़की ने तत्काल सही उत्तर बता दिया । निरीक्षक ने अगला प्रश्न पूछा- ” तुम पर कौन शासन करता है ? ” इस प्रश्न का उत्तर देने में वह लड़की हिचकिचाई । 

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उसके अंदर की देशभक्ति भावना , गुलामी कुबूल करने को तैयार न थी । अपने विदेशी शासक का नाम जबान पर लाना उसे पसंद न था। पर मजबूर होकर उसेजार ‘ का नाम लेना पड़ा । उसे बहुत देर तक लगता रहा जैसे उसने कोई अपवित्र कार्य किया हो । देशभक्ति की भावना में डूबी इस बालिका का नाम था— मैरी स्क्लोदोवस्की । उसे प्यार से लोग ‘ मान्या ‘ कहते थे । 

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मान्या का जन्म 7 नवंबर 1867 को पोलैंड के वारसा नगर में हुआ था । माता – पिता अध्यापक का कार्य करते थे और उसी से परिवार का गुजारा होता था । मान्या की माँ अक्सर बीमार रहा करती थी । इसी बीच देशभक्तिपूर्ण विचारों वाला होने के कारण मान्या के पिता को नौकरी से हटा दिया गया । माँ सख्त बीमार हो गई । घर पर जैसे विपत्ति का एहाड़ टूट पड़ा । मान्या ने बड़ी मुश्किल से पढ़ाई जारी रखी ।

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 स्कूल की पढ़ाई के अंतिम वर्ष में मान्या को सबसे ज्यादा नंबर मिले । इसके लिए उसे स्वर्णपदक भी मिला । अब उच्च शिक्षा का सवाल था । इसके लिए विदेश जाना था और वहाँ के खर्च की समस्या थी । मान्या के पिता के पास इतना पैसा न था कि वह मान्या और उसकी बड़ी बहन ब्रोन्या को पढ़ाने के लिए विदेश भेज सकें । तब दोनों बहनों ने ट्यूशन करके पढ़ाई करने के लिए पैसा जमा करना शुरू किया ।

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 मान्या ने इस बीच मजदूरों को भी गुप्त रहकर पढ़ाना शुरू कर दिया । लेकिन वह स्वयं पेरिस जाकर सारबोन विश्वविद्यालय में पढ़ना चाहती थी । इसी दौरान ब्रोन्या पेरिस चली गई । मान्या ने उसकी मदद की । पिता भी कुछ धन ब्रोन्या को भेजा करते थे । ब्रोन्या कठिन परिश्रम कर रही थी और सभी परीक्षाओं में पास होती रही । उसका एक सहपाठी था— कैसीमिर दलूस्की । 

दोनों एक दूसरे को चाहने लगे थे । पढ़ाई पूरी करके दोनों ने शादी कर ली । इसके बाद ब्रोन्या का पत्र आया । उसने मान्या को पेरिस बुलाया था , ताकि वह अपनी पढ़ाई पूरी कर सके । हालांकि परिवार की स्थिति अच्छी न थीं — किंतु पिता के प्रोत्साहन से मान्या पेरिस चली गई । अब ‘ मान्या ‘ ‘ मैरी ‘ हो गई थी । मैरी को पाकर ब्रोन्या और कैसीमिर बहुत प्रसन्न हुए । कैसीमिर दलूस्की का घर पोलैंड के देशभक्तों का केन्द्र बन चुका था ।

वहाँ बहुत भीड़ लगी रहती थी । विश्वविद्यालय भी दूर था । इसलिए मैरी ने निश्चय किया कि वह विश्वविद्यालय के निकट ही कहीं एक कमरा लेकर रहेगी । 

लेकिन कमरा ऐसा मिला , जिसमें न धूप आती थी , न हवा । बेहद सीलन भरा था । पर मैरी उससे अच्छे कमरे का किराया भी तो न दे सकती थीं , वह पढ़ाई में व्यस्त हो गई । खाने – पीने की कोई नियमित व्यवस्था न थी । परीक्षा का समय आ गया । मैरी दिन – रात पढ़ने लगी । एक दिन उसे विश्वविद्यालय में चक्कर आ गया । अगले दिन यह बात कैसीमिर को मालूम हुई । वह तुरंत मैरी के पास आया । 

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उसने कमरे का हाल देखा वहाँ ऐसा कहीं कुछ न था जिससेमैरी क्यूरी 29 लगे कि भोजन बनाया गया हो । उसने मैरी से पूछा– “ तुमने खाना खाया ? ” ” हाँ ” मैरी ने उत्तर दिया । जबकि सच्चाई यह थी कि मैरी तीन दिनों से भूखी थी । आखिर कैसीमिर जिद करके मैरी को अपने घर ले गया वहाँ खाना खिलाया । मैरी की कमजोरी का इलाज कराया । कुछ दिनों बाद मैरी फिर वापस अपने कमरे में आ गई । 

1.मैरी क्यूरी बायोग्राफी इन हिन्दी

मैरी क्यूरी बायोग्राफी इन हिन्दी :- इस तरह भूख – प्यास , सर्दी – गर्मी सहकर मैरी निरंतर अपनी पढ़ाई करती रही और उसे सफलता भी मिली । मैरी की प्रतिभा देखकर राष्ट्रीय उद्योग प्रोत्साहन समिति ने विभिन्न इस्पातों की चुंबकीय शक्तियों की खोज का काम उसे सौंपा । इन्हीं दिनों मैरी एक वैज्ञानिक पियरी क्यूरी के संपर्क में आई । पियरी एक नवयुवक फ्रांसीसी वैज्ञानिक था । वह भौतिकी एवं रसायन विज्ञान स्कूल में काम करता था । उसकी आयु 35 वर्ष थी , जबकि मैरी 26 वर्ष की थी । पर पियरी देखने में कम उम्र का लगता था ।

पर मैरी और पियरी के बीच उम्र का अंतर कोई बाधा न बन सका , क्योंकि दोनों एक दूसरे को चाहने लगे थे । पियरी की वैज्ञानिक प्रतिभा आश्चर्यजनक थी । उसने अठारह वर्ष की उम्र में ही एम.एससी . कर ली थी । मैरी और क्यूरी के संबंध बढ़ते गए और अंत में दोनों ने विवाह कर लिया । मैरी ने अपना अनुसंधान पूरा करके राष्ट्रीय उद्योग प्रोत्साहन समिति को सौंप दिया । विभिन्न इस्पातों में चुंबकीय शक्ति पर किया गया यह महत्त्वपूर्ण अनुसंधान था । अब मैरी विश्वविद्यालय में काम करना चाहती थी । 

इसके लिए उसे फैलोशिप मिली । उसे डाक्टरेट के लिए किसी विषय पर काम करना था । उस समय एक्स किरणों की खोज हो चुकी थी । एक फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने पता लगाया था कि यूरेनियम से जो किरणें निकलती हैं , वे यूरेनियम को महीनों अंधेरे में रखने के बावजूद भी नष्ट नहीं होती । किंतु यह विकिरण कैसे होता है , इसकी खोज नहीं हुई थी ।

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मैरी को लगा कि इसी विषय पर कार्य करना उचित होगा । उसे अपने वैज्ञानिक पति का सहयोग प्राप्त था ही । मैरी क्यूरी ने ज्यों – ज्यों अपना अनुसंधान आगे बढ़ाया— यूरेनियम की किरणों के बारे में महत्त्वपूर्ण परिणाम ज्ञात होने लगे । मैरी के मन में जिज्ञासा हुई कि क्या अन्य किसी धातु से भी इस प्रकार की किरणें निकलती हैं ? उन्होंने यूरेनियम पर खोज बंद करके दूसरी धातुओं पर काम शुरू किया ।

 पता लगा कि थोरियम धातु के यौगिकों से भी किरणें निकलती हैं । फिर पिचब्लैंड नामक धातु पर काम किया । मालूम हुआ कि इसमें यूरेनियम और थोरियम से भी ज्यादा शक्तिशाली किरणें निकलती हैं । इस विकिरण की क्रिया को मैरी ने नाम दिया था — ‘ रेडियो ऐक्टिविटी ‘ । अब मैरी पिचब्लैंड धातु के और भी अनुसंधान करना चाहती थी । इसके लिए

उसे किसी सहयोगी की जरूरत थी और पियरी से अच्छा सहयोगी कौन हो सकता था । पियरी ने अपना काम रोक दिया और मैरी के साथ काम करने लगा और 27 दिसम्बर , 1898 को मैरी और पियरी दंपती ने विज्ञान अकादमी के सामने घोषणा की— ” हमने एक नए तत्व की खोज कर ली है । उसका नाम रखा है — रेडियम । रेडियम की खोज से विज्ञान जगत् में क्रांति सी आ गयी । अब सवाल यह था कि रेडियम को देखा , तोला और स्पर्श कैसे किया जा सकता है । क्यूरी दंपती उसे निकालने में जुट गए ।

2.मैरी क्यूरी बायोग्राफी इन हिन्दी

मैरी क्यूरी बायोग्राफी इन हिन्दी :- उन्हें भारी मात्रा में पिचब्लैंड धातु प्रयोग के लिए मिल गई । काम शुरू हुआ और चार वर्ष बाद सन् 1902 में उन्होंने थोड़ी मात्रा में रेडियम प्राप्त करने में सफलता पा ली । क्यूरी दंपती का नाम सारे विश्व में फैल गया । लेकिन आर्थिक रूप से वे अब भी सुखी न थे । दोनों नौकरी करते थे— तब घर का खर्चा चलता था । वे चाहते थे कि उनकी अपनी प्रयोगशाला । 

पर इसके लिए धन चाहिए था । फिर भी गरीबी का जीवन जीकर वे अनुसंधान में जुट रहे । इससे दोनों के स्वास्थ्य पर असर पड़ा । दोनों बीमार रहने लगे । अब तक क्यूरी दंपती को रेडियम का माता – पिता कहा जाने लगा था । पियरी ने रेडियम का मानव शरीर पर प्रभाव जानने का प्रयोग अपनी बाँह पर किया । बाँह काफी गहरे तक जल गई और उस घाव को भरने में दो महीने का समय लग गया । फिर जानवरों पर रेडियम के प्रभाव का अध्ययन किया । 

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अंत में वह इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि विशेष प्रकार की अस्वस्थ वृद्धियों का रेडियम द्वारा उपचार हो सकता है । जब अन्य देशों ने रेडियम का उत्पादन करने की विधि और अनुमति माँगी तो क्यूरी दंपती ने कहा- ” यह हमारी व्यक्तिगत संपत्ति नहीं है- सार्वजनिक कल्याण की कामना से ही हमने रेडियम की खोज की है । शुद्ध रेडियम प्राप्त करने की विधि हम अखबारों में प्रकाशित करवा देंगे जिससे सब लोग उसे जान सकें । यदि हमें इस खोज से रुपया कमाना होता तो हम संसार के सर्वाधिक धनी व्यक्ति होते ।

” मैरी क्यूरी ने अपना अनुसंधान पाँच वर्ष तक जारी रखा और जब उन्होंने अपना शोध प्रबंध सारबोन विश्वविद्यालय में सौंपा तो 25 जून , 1903 को निर्णायकों ने उन्हें ‘ डॉक्टर ऑफ फिजिकल साइंस ‘ की उपाधि से विभूषित किया । लंदन की रॉयल सोसायटी ने क्यूरी दंपती को बुलाकर सम्मानित किया ।

इसके साथ ही पियरी क्यूरी और मैरी क्यूरी को सन् 1903 का ‘ नोबेल पुरस्कार ‘ भी मिला । सन् 1905 में पियरी क्यूरी को सारबोन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर नियुक्त किया गया और मैरी क्यूरी को विज्ञान प्रयोगशाला का निदेशक बनाया गया । इससे उनकी आर्थिक स्थिति भी अच्छी हो गई और प्रयोग करने की सुविधा भी मिल गई ।

किंतु एक वर्ष बाद 19 अप्रैल 1906 को लंदन में वर्षा हो रही थी । सड़कों पर भीड़ बहुत थी । पियरी क्यूरी अपनी धुन में चले जा रहे थे । उन्होंने सड़क पर पैर फिसल गया । वह गिर पड़े । अचानक सामने घोड़ा गाड़ी आ गई । उसने उन्हें कुचल दिया और तभी एक महान् वैज्ञानिक का अंत हो गया ।

मैरी क्यूरी ने इस सदमे को बड़ी मुश्किल से बर्दाश्त किया । अब मैरी , पियरी के अधूरे काम को पूरा करना चाहती थी । मैरी को , पियरी के स्थान पर प्रोफेसर नियुक्त कर दिया गया । मैरी के कंधों पर अब गृहस्थी , प्रोफेसर का काम , प्रयोगशाला के निदेशक का काम , शोध कार्य आदि का बोझ पड़ने लगा था । 

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किंतु मैरी हर काम को पूरी जिम्मेदारी से निभा रही थी । सन् 1911 में , रसायन विज्ञान में मौलिक खोज के लिए मैरी क्यूरी को दूसरी बार नोबेल पुरस्कार मिला । वह नोबेल पुरस्कार पाने वाली प्रथम महिला के साथ साथ दो नोबेल पुरस्कार पाने वाली प्रथम वैज्ञानिक भी थी । सन् 1919 में मैरी क्यूरी को रेडियम प्रयोगशाला का प्रमुख बनाया गया । सन् 1920 की बात है ।

4.मैरी क्यूरी बायोग्राफी इन हिन्दी

मैरी क्यूरी बायोग्राफी इन हिन्दी :- एक अमेरिकी महिला श्रीमती मैलोन उनसे मिलने आईं । बातों – बातों में उन्होंने मैरी से पूछा— ” आप कौन – सी वस्तु उपहार में लेकर प्रसन्नता अनुभव करेंगी ? ” मैरी ने कहा – “ मुझे अपने शोधकार्य के लिए एक ग्राम रेडियम की आवश्यकता है , किंतु वह इतना महँगा है कि मैं उसे कभी भी नहीं खरीद सकती ।

” श्रीमती मिलोन ने अमेरिका जाकर चंदा इकट्ठा किया और एक ग्राम रेडियम खरीद लिया । अब उन्होंने आग्रह किया कि इस भेंट को स्वीकार करने के लिए मैरी स्वयं अमेरिका पधारें । 20 मई , 1921 को अमेरिका राष्ट्रपति हार्डिज ने , व्हाइट हाउस में आयोजित एक समारोह में मैरी को एक ग्राम रेडियम भेंट किया । 

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राष्ट्रपति ने मैरी को श्रेष्ठ मान , आदर्श पत्नी और आदर्श माँ कहकर संबोधित किया था । रेडियम पर लगातार प्रयोग करते रहने का प्रभाव उनके शरीर पर एक न एक दिन पड़ना ही था । मई सन् 1934 में एक दिन प्रयोगशाला में उन्हें बुखार हो गया । एक्स – रे से पता लगा कि उनके फेफड़े में कुछ खराबी है ।

उन्हें स्विट्जरलैंड ले जाया गया । जाँच से पता चला कि उनके शरीर में रक्त प्रवाह में बाधा आ रही है और इसका उपचार संभव नहीं है । वह अधिक दिन नहीं जी सकेंगी । आखिर 4 जुलाई , 1934 को मैरी क्यूरी का निधन हो गया ।

 उनकी मृत्यु का कारण रेडियम का प्रभाव था जिसकी खोज उन्होंने मानव कल्याण के लिए की थी । वह रेडियम उनके लिए जान लेवा बन गया । विज्ञान जगत् , मैरी क्यूरी की इस खोज के लिए उन्हें सदा याद करेगा ।

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