Srinivasa Ramanujan Biography in Hindi- श्रीनिवास रामानुजन 2022

srinivasa ramanujan biography in hindi:- श्रीनिवास रामानुजन भारत के महान एवं प्रसिद्ध गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसम्बर , सन् 1867 को भारत के ईरोड नामक स्थान पर हुआ था । इन्होंने संस्था सिद्धांत का प्रतिपादन किया । इस सिद्धांत में विभाजन फलन के गुणधर्मों की खोज सम्मिलित है । रामानुजन द्वारा अर्जित किया गया सम्पूर्ण गणित ज्ञान अद्भुत व विचित्र था ।

हालांकि इस क्षेत्र के पूर्ववर्ती विकास के बारे में वह बिल्कुल अनभिज्ञ थे , सतत् भिन्न पर उनकी दक्षता का कोई भी गणितज्ञ मुकाबला नहीं कर सकता । उन्होंने रीमैन श्रेणी , दीर्घ समाकलन , हाइपरज्योमेट्रिक श्रेणी , जीटा फलन के फलनिक समीकरणों को हल किया तथा अपसारी श्रेणी का अपना सिद्धांत खोज निकाला ।

दूसरी तरफ , उनके ज्ञान की रिक्तियां भी चौंकाने वाली में वह द्विआवर्ती प्रकार्य , प्रतिष्ठित द्विघाती समघात या कौशी परिमेय के बारे में कुछ नहीं जानते थे । उन्हें गणितीय प्रमाण के बारे में बेहद धुंधली जानकारी थी । वह प्रतिभाशाली थे , लेकिन अभाज्य संख्या सिद्धांत के बारे में उनके कई प्रमेय पूरी तरह गलत थे । इंग्लैंड में रामानुजन ने विशेष रूप से संख्या विभाजन के बारे में आगे शोध किया ।

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उनके शोध पत्र अंग्रेजी एवं यूरोपीय पत्रिकाओं में छपे और सन् 1918 में वह पहले भारतीय बने , जिन्हें रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन के लिए चुना गया । सन् 1917 में रामानुजन को क्षय रोग हो गया , लेकिन हालत में कुछ सुधार के बाद 1919 ई . में वह भारत लौट आए ।

Srinivasa ramanujan biography in hindi

आमतौर पर विश्व के लिए अनजान , लेकिन गणितज्ञों के लिए लियनहार्ड यूलर ( 1707-88 ) और कार्ल जैकोबी ( 1804-51 ) के बाद अद्वितीय और अपूर्व प्रतिभावान रामानुजन का अगले ही वर्ष देहांत हो गया ।

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जब रामानुजन 15 साल के थे , उन्होंने जॉर्ज शूब्रिज कार की सिनीप्सिस ऑफ एलीमेंटरी रिजल्ट्स इन प्योर एंड अप्लाइड मैथेमेटिक्स , दो खंड ( 1980-86 ) की एक विश्व के महान वैज्ञानिक 6 प्रति प्राप्त की । करीव 6,00 प्रमेयों के संकलन ( कोई भी सामग्री 1860 के बाद की नहीं थी ) ने उनकी प्रतिमा को जागृत किया ।

कार की पुस्तक के परिणामों की पुष्टि करने के बाद रामानुजन ने इससे आगे जाकर खुद की प्रमेयों एवं धारणाओं को विकसित किया । सन् 1903 में उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय के लिए छात्रवृत्ति पाई , लेकिन गणित में मग्न रहने और अन्य विषयों की अनदेखी के कारण अगले ही साल उन्हें छात्रवृत्ति से हाथ धोना पड़ा ।

Srinivasa ramanujan biography in hindi

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बेरोजगारी और विपरीत परिस्थितियों में रहने के बावजूद रामानुजन अपने कार्य में लगे रहे । सन् 1909 में शादी के बाद वह स्थायी नौकरी की तलाश में लग गए , जिसकी परिणति एक सरकारी अधिकारी रामचंद्र राव के साथ साक्षात्कार में हुई ।

रामानुजन के गणितीय कौशल से प्रभावित होकर राव ने कुछ समय तक उनके अनुसंधान में सहायता की , लेकिन दान पर निर्भर रहने के अनिच्छुक रामानुजन ने मद्रास बंदरगाह न्यास में लिपिक पद पर काम करना शुरू कर दिया ।

सन् 1911 में रामानुजन ने जर्नल ऑफ द इंडियन मैथेमेटिक्स सोसाइटी में अपने पहले शोधपत्र प्रकाशित कराए । उनकी प्रतिभा को धीरे – धीरे मान्यता मिली और 1913 ई . में उन्होंने अंग्रेज गणितज्ञ गॉडफ्रे एच.हार्डी से पत्राचार शुरू किया , जिसके परिणामस्वरूप उन्हें मद्रास विश्वविद्यालय से विशेष छात्रवृत्ति एवं ट्रिनिटी कॉलेज , केंब्रिज से अनुदान प्राप्त हुआ । अपने धार्मिक संस्कारों पर विजय पाते हुए रामानुजन 1914 ई . में इंग्लैंड गए , जहां हार्डी ने उन्हें पढ़ाया तथा उनके कुछ शोध कार्यों में भी सहयोग दिया ।

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21 नवम्बर सन् 1970 को इस महान गणितज्ञ का तमिलनाडु के कुंबकोणम नामक स्थान पर देहान्त हो गया । आज रामानुजन हमारे नहीं पायेंगे । बीच नहीं है लेकिन उनके द्वारा दिये गये योगदानों व कार्यों को हम कभी भी भुला नहीं पायेंगे