Hippocrates Biography in Hindi हिपॉक्रेटीज़ जीवनी हिंदी में 2022

Hippocrates Biography in Hindi:- अपनी बुद्धि और विवेक के अनुसार मैं बीमारों की सेवा के लिए ही उपचार करूंगा , किसीको हानि पहुंचाने के उद्देश्य से कदापि नहीं । मुझे कितना ही विवश क्यों न किया जाए , मैं किसीको विषैली दवा न दूंगा ।

मैं किसी भी घर में जाऊं , मेरा उद्देश्य बीमारों की मदद करना ही होगा । अपने पेशे के दौरान में जो कुछ भी देखूं या सुन – यदि वह प्रकट करने योग्य न हुआ तो मैं उसे कभी जाहिर न करूंगा । ये विचार उस शपथ में आज भी शामिल हैं जो डाक्टरी पास करनेवाले विद्यार्थी ग्रहण करते हैं ।

पूरे वक्तव्य को ‘ हिपॉक्रेटिक ओथ ‘ कहते हैं जो यूनान के महान चिकित्सक हिपॉक्रेटीज की सीख पर आधारित है । अनेक प्राचीन ग्रीसवासियों को हम उनकी कृतियों के द्वारा ही जान पाए हैं । हिपॉक्रेटीज के व्यक्तिगत जीवन के विषय में भी विशेष उल्लेख नहीं मिलता ।

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इतना ही वृत्तान्त मिला है कि ईसा से लगभग 460 वर्ष पूर्व यूनान के कॉस द्वीप में हिपॉक्रेटीज ने जन्म लिया था । एस्क्युले पिअस का मन्दिर इसी द्वीप पर स्थित था और सम्भवतः हिपॉके टोक के पिता इसी मन्दिर के पुरोहित थे । कुछ ऐसे लोग हैं जो कहते हैं कि हिपॉक्रेटीज हुआ ही नहीं , उसके नाम से प्रसिद्ध चिकित्साशास्त्र विषयक सत्तर पुस्तकें एक लेखक संघ की रचानाएं हैं ।

Hippocrates Biography in Hindi

Hippocrates Biography in Hindi :- जैसा भी हो , प्रसिद्ध यूनानी इतिहासज्ञ और दार्शनिक प्लेटो ने हिपॉक्रेटीज नामक व्यक्ति की चर्चा की है । प्लेटो का कहना है कि हिपॉक्रेटीज ने दूर – दूर तक भ्रमण किया ; जहां भी वह गया , उसने  विश्व के महान वैज्ञानिक 12 चिकित्साशास्त्र की शिक्षा दी ।

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थेलीज़ नामक यूनानी गणितज्ञ ने ईसा पूर्व छठी शताब्दी में कॉस द्वीप में जिस पाठशाला की स्थापना की थी वही सम्भवतः कालान्तर में हिपॉक्रेटीज की शाला बन गईं । चिकित्साशास्त्र के सिद्धान्तों तथा चिकित्सक और रोगी के बीच समु चित व्यक्तिगत सम्बन्धों की शिक्षा इस शाला में दी जाती थी । हिपॉकेटीज के अभ्युदय – काल तक रोगों का निदान और उपचार एस्क्युलेपिअस के पुरोहितों के हाथों में था । एस्क्युलेपिअस ग्रीक और रोमन का आरोग्य – देवता था ।

पुराणों के आधार पर यह माना जाता है कि एस्क्युलेपिअस सिद्धहस्त चिकित्सक था और उसमें मृतकों को जीवित कर देने की क्षमता थी । उन दिनों बीमारी को देवताओं की अप्रसन्नता का परिणाम समझा जाता था , अतः रोग से छुटकारा पाने का एकमात्र उपाय था देवताओं को भेंट चढ़ाना । बीमार यदि चल पाते तो एस्क्युलेपिअस के मन्दिर तक पैदल जाते थे और पुरोहितों की मदद से देवताओं के कृपा पात्र बनते थे ।

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बहुतेरे रोगी शरीर के नीरोग होने की स्वाभाविक क्षमता के फलस्वरूप ही चंगे होकर घर लौटते थे । कभी – कभी मन्दिर के पुरोहित मरहम या काढ़ा दे देते थे ; यद्यपि इस इलाज का उन भाग्यशालियों के अच्छे होने न होने से कोई सम्बन्ध न होता था ।

यह समझ लेना कठिन नहीं है कि लोग हिपॉक्रेटीज को सन्देह की दृष्टि से देखते होंगे क्योंकि उसने इस विश्वास को समाप्त कर दिया था कि देवताओं में शरीर को नीरोग करने की शक्ति होती है । फिर भी वह इतना चतुर तो था ही कि देवताओं के प्रति लोगों की इस आस्था का पूरी तरह विरोध न करे । पहले हिपॉक्रेटीज़ की शपथ इस तरह थी , ” मैं चिकित्सक अपोलो , एस्क्युलेपिअस , आरोग्य संजीवनी तथा सभी देवी – देवताओं के नाम पर दापथ लेता हूं … ” किन्तु हिपॉक्रेटीज्र की आस्था प्रत्यक्ष और परीक्षित तथ्यों पर ही थी ।

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रोग और निदान के सम्बन्ध में प्रचलित अंधविश्वास पर विजय पाने की उसने पूरी कोशिश की । सारे सभ्य संसार ने हिपॉक्रेटीज की योग्यता का भंडा फहराया । फारस के बादशाह आतंजिक्र्सीज ने उसे अनन्त सम्पदा इसलिए देनी चाही कि वह फारस की फौजों का विनाश करनेवाली महामारी को रोक दे । उस समय फारस और ग्रीस के बीच युद्ध चल रहा था , इस कारण हिपॉकेटीज ने यह कहकर प्रस्ताव ठुकरा दिया कि देश के शत्रु की सहायता करना उसके सम्मान के अनुकूल नहीं है ।

इस घटना को प्रसिद्ध तैल चित्र में दर्शाया गया है जो पेरिस के मेडिकल स्कूल में लगा है । चिकित्सा – ग्रन्थों में विस्तार से लिखित हिपॉक्रेटीज के उपदेशों की खोज मध्ययुग में फिर से की गई । दुर्भाग्य से इन पुस्तकों को सम्पूर्ण और अन्तिम रूप से सही मान लिया गया ।

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चिकित्साशास्त्र के सिद्धान्त के रूप में इनकी मान्यता सर्वोपरि है । सम्भव है । हिपॉकेटीज के लेखों में अब तक कमी नहीं आई तथापि उनके शब्दों का आख मूंदकर अनुसरण करने का परिणाम यह हुआ कि सदियों तक चिकित्साशास्त्र में कोई प्रगति नहीं हुई । ईसा के लगभग दो सौ साल बाद कितनी ही बातों पर गैलेन का हिपॉक्रेटीज से मदभेद था । फिर भी हिपॉकेटीज के प्रति लोगों की आस्था में तनिक भी अन्तर नहीं आया और

हिपॉकेटीज़ 13 वे यह समझते रहे कि हिपॉकेटीज का मत अचूक है । फ्रांस के चिकित्सा – विशारद किसी भी गहन प्रश्न के परस्पर विरोधी उभय पक्षों को प्रकट करने के लिए आज भी यह कहते हैं , ” गैलेन हां कहता है पर हिपॉक्रेटीज ना कहता है ।

” इतिहास में अनेक उदाहरण हैं , जिनके कारण एक अच्छे सिद्धान्त की दासता ने विज्ञान की प्रगति को रोका है । विज्ञान को अतीत की पुतपरीक्षा के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए । हिपॉकेटीज़ के विचार से चिकित्सा का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग शरीर – विज्ञान ( ऐनाटॉमी ) है । परन्तु आगे चलकर कुछ युगों तक शरीरतंत्र के अध्ययन की उपेक्षा होती रही और पन्द्रहवीं सदी में वैसे लियस ने ही इसका पुनवद्वार किया । तब तक चीर – फाड़ का काम नाइयों के हाथ में था ।

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इंग्लैण्ड के राजा हेनरी अष्टम ( 1509-1547 ) के राजकाल में एक कानून द्वारा यह आदेश दिया गया था कि खराब खून या दांत निकाल फेंकने के अलावा नाई चीरफाड़ का कोई काम नहीं करेंगे । साथ ही यह मनाही कर दी गई थी कि शल्यशास्त्री हजामत बनाने का काम नहीं करेंगे । इग्लैण्ड में नाइयों द्वारा प्रदर्शित स्तम्भ ‘ वावर पोल ‘ आज भी नाइयों द्वारा किए गए चीरफाड़ के इतिहास को व्यक्त करता है ।

नाइयों के इस स्तम्भ 14 विश्व के महान वैज्ञानिक ( बार्बर पोल ) में लगी झंडी की सफेद धारी पट्टी का प्रतीक है और लाल धारी रक्त का । हिपॉक्रेटीज की शपथ में डाक्टर और सर्जन दोनों का काम पृथक् कर दिया गया है । यथा , ” मैं चाकू नहीं चलाऊंगा यह काम विशेषज्ञों को सौंपूंगा ।

” हिपॉक्रेटीज़ के मतानुसार सर्जन का पद डाक्टर के पद से ऊंचा है ; जैसाकि हम आज भी मानते हैं । हिपॉक्रेटीज आधुनिक चिकित्साशास्त्र का जनक है । रोगों के कारणों को आसपास ढूंढ़ना ही वह श्रेयष्कर समझता था न कि देवताओं के प्रकोप में उसकी शिक्षा यही थी कि चिकित्सक रोगी को ध्यानपूर्वक देखे , उसकी परीक्षा करे और रोग के लक्षणों को लिख डाले ।

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इस तरह वह एक लेखा तैयार कर सकता है , जिसके आधार पर यह निश्चित किया जा सके कि रोगी का इलाज किस ढंग से करने पर वह नीरोग हो सकेगा । रोगियों की परीक्षा के लिए उसने कुछ सामान्य नियम निश्चित किए- रोगी की आंखों की त्वचा का रंग कैसा है , शरीर का ताप कितना है , भूख लगती है या नहीं , पेशाब और पाखाना नियमित होता है या नहीं ।

हिपॉक्रेटीज़ रोगी के सम्बन्ध में दैनिक विवरण तैयार करता था और ऐसा करने के लिए जोर भी देता था । वह रोगी की प्रगति से सम्बन्धित एक चार्ट भी बनाता था । उसे इस बात का ज्ञान था कि जलवायु और ऋतु परिवर्तन का विभिन्न रोगों पर क्या असर होता है । उदाहरणार्थ , जुकाम हमें सदियों में ही अधिक होता है । इस तथ्य की ओर ध्यान

हिपॉक्रेटीज़ 15 देते हुए हिपॉक्रेटीज को एक अन्य बात सूझी कि ज्योतिविज्ञान तथा चिकित्साशास्त्र में कुछ न कुछ गूढ़ सम्पर्क अवश्य होना चाहिए क्योंकि ज्योतिर्विज्ञान विभिन्न ऋतुओं के सम्बन्ध में निश्चय करने के लिए महत्त्वपूर्ण है । इस सूझ का परिणाम यह हुआ कि आयुर्वेद के विद्यार्थी बिना किसी उपयुक्त कारण के सदियों तक ज्योतिर्विज्ञान का अध्ययन करते रहे । हिपॉक्रेटीज़ चिकित्सक की सामाजिक मर्यादा और उसमें सामान्य जनता को आस्था पर बहुत जोर देता था ।

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वह डाक्टरों को प्रायः यह सलाह दिया करता था कि वे रोगियों को यह बताने में कभी न हिचकिचाएं कि बीमारी कब तक चलेगी क्योंकि यदि उनकी यह • भविष्यवाणी सही उतरी तो लोग उनपर अधिकाधिक विश्वास करेंगे और उपचार के लिए अपने आप को निःसंकोच सौंप देंगे । हिपॉक्रेटीज़ के कुछ अनुभव आधुनिकतम प्रतीत होते हैं ; जैसे , मोटे लोग आम तौर से दुबले – पतले लोगों की अपेक्षा जल्दी मर जाते हैं , बूढ़ों की खुराक नौजवानों की खुराक की अपेक्षा कम हुआ करती है ।

सदियों में खूराक ज्यादा होती है और गर्मियों में कम ; दुबले – पतले आदमी खूराक को घटा सकते हैं , लेकिन उसमें चर्बी का अंश कम नहीं होना चाहिए तथा मोटे आदमी खूराक को बढ़ा सकते हैं , लेकिन उसमें चर्बी का अंश कम होना चाहिए ; चिन्ता , थकावट और सर्दी के कारण होनेवाली शारीरिक व्याधियों को पानी और शराब की बराबर मात्रा लेने से दूर किया जा सकता