M. visvesvaraya biography in hindi:- 15 सितम्बर सन् 1861 ई . को डॉक्टर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया चिकबल्लुपुर ( कर्नाटक ) में जन्में थे । इनके पिता का नाम पंडित श्रीनिवास शास्त्री था और मा का नाम वेंकचम्पा था । इनकी पारिवारिक आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी इनके माता – पिता दोनों ही सरल के थे जिससे विश्वश्वरैया बहुत प्रभावित हुए ।
बालक विश्वेश्वरैया ने देश की परम्पराओं और सभ्यता के प्रति आदर भाव और श्रद्धा के संस्कार ग्रहण किए । बालक विश्वेश्वरैया बचपन से ही अत्यंत प्रखर बुद्धि के थे । वह अपने परिवार की आर्थिक समस्याओं से हताश नहीं हुए तथा हाई स्कूल की पढ़ाई के लिए बंगलौर चले गए तथा सेंट्रल कॉलेज में अपना नाम लिखवाया । उन्होंने अत्यंत कठिनाई पूर्वक अपना जीवन यापन किया ।
- Hippocrates Biography in Hindi
- Aristotle biography in hindi
- Galen biography Hindi
- Pythagoras Biography in Hindi
M. visvesvaraya biography in hindi
19 वर्ष की आयु में उन्होंने 1881 ई . में बंगलौर के सेंट्रल कॉलेज से बी.ए. की परीक्षा पास की । डॉ . विश्वेश्वरैया की प्रतिभा और परिश्रम से प्रभावित होकर सेंट्रल कॉलेज के प्रधानाचार्य ने इन्हें पूना के विज्ञान महाविद्यालय में दाखिला करा दिया और छात्रवृत्ति भी दिलवा दी ।
यहां पर उनके अध्ययन का विषय यंत्रशास्त्र था । छात्रवृत्ति मिलने की वजह उन्हें स्वाध्याय का और अधिक वक्त प्राप्त हो गया । इस समय का उन्होंने पूर्ण सद्पयोग किया और वे 1883 ई . में बम्बई विश्वविद्यालय की यंत्रशास्त्र की परीक्षा में उन्हें प्रथम स्थान प्राप्त हुआ । सन् 1884 ई . में बम्बई सरकार ने विश्वेश्वरैया को नासिक सहायक अभियंता के पद पर नियुक्त कर दिया ।
इस पद पर उन्होंने बहुत लगन , परिश्रम और ईमानदारी का परिचय दिया तथा कुछ ही समय में सभी को अपनी प्रतिभा का कायल बना दिया । बड़े नगरों में जल कहां से और किस रीति से लाया जाए , कहां पर एकत्रित किया जाए और किस प्रकार लोगों के घरों तक पहुंचाया जाए , यह आसान नहीं था । उन दिनों सिंध बम्बई प्रान्त का ही एक भाग था जिसमें जल संकट विरोध विशेष रूप से व्याप्त था क्योंकि यह क्षेत्र रेगिस्तान था ।
M. visvesvaraya biography in hindi
श्री विश्वेश्वरैया ने सन् 1894 ई . में सक्खर बांध का निर्माण तैयार कर सिंघ हेतु जल – कल की समुचित व्यवस्था की । इससे वे सम्पूर्ण भारत में उनका गुणगाण किया जाने लगा । इस समय तक उनकी पदोन्नति भी हो गई थी और वह अधीक्षक अभियंता ( सुपरिंटेंडिंग इंजीनियर ) हो गए थे । सक्खर बांध निर्माण में सफलता प्राप्ति के फलस्वरूप उन्हें बम्बई प्रांत के बाहर के नगरों की जल – कल तथा नाली – व्यवस्था करने का कार्य सौंपा गया ।
बंगलौर , पूना , मैसूर , कराची बड़ौदा , ग्वालियर , इंदौर , कोल्हापुर , सांगली , सूरत , नासिक , नागपुर , धारवाड़ , बीजापुर – इस अपूर्ण सूची के कुछ नगर हैं जहां उन्होंने पानी और नालियों को व्यवस्थित किया । सन् 1906 ई . में उन्हें अदन की जल – कल व्यवस्था के लिए के लिए बहुत अधिक प्रसिद्ध हासिल हुई और उनका नाम देश के बड़े इंजीनियरों की श्रेणी में दर्ज हो गया , परन्तु दो वर्ष बाद उन्होंने इस पद से त्यागपत्र दे दिया । डॉ . विश्वेश्वरैया को इस माहौल में कार्य करना रास नहीं आया ।
नौकरी के नियमानुसार उन्हें पेंशन नहीं मिल सकती थी , लेकिन सरकार ने उनकी महत्त्वपूर्ण सेवाओं को ध्यान में रखकर इन्हें पूरी पेंशन दी । डा . विश्वेश्रैया नौकरी से त्यागपत्र देने के बाद यूरोप चले गये । अचानक कुछ दिनों के पश्चात् उन्हें हैदराबाद रियासत के निजाम का एक तार मिला । इसमें निजाम ने अपने राज्य की मूसी नदी में आई भयंकर बाढ़ के कारण संकट में पड़े हैदराबाद नगर की सुरक्षा करने का अनुरोध किया था । विश्वेश्वरैया तार मिलते ही हैदराबाद वापस लौट आए ।
M. visvesvaraya biography in hindi
आते ही सबसे पहले उन्होंने मूसी नदी तथा ईसा नदी को नियंत्रण में रखने की योजना बनायी और नगर में आनेवाली बाढ़ की समस्या का सदा के लिए समाधान कर दिया । इसके साथ ही नगर हेतु जल और नालियों को भी व्यवस्थित किया । मैसूर के महाराजा कृष्णराज वाडियार के अनुरोध पर डॉ . विश्वेश्वरैया ने 1909 ई . में राज्य के मुख्य अभियंता का पद स्वीकार कर लिया ।
तीन सालों तक वह इस पद पर बने रहे एवं बाद में सन् 1912 ई . में रियासत के दीवान बना दिए गए । इस पद को भी उन्होंने छः वर्ष तक सुशोभित किया । इस प्रकार नौ वर्ष तक उन्होंने मैसूर राज्य में कार्य किया । इस नौ वर्ष की अवधि में उन्होंने मैसूर राज्य की काया पलट दिया । उन्होंने कावेरी नदी पर कृष्णराज सागर बांध का निर्माण कर सिंचाई के लिए जल तथा उद्योग – धंधों के लिए बिजली सुविधा प्रदान कर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया ।
डॉ . मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया 3 डॉ . विश्वेश्वरैया के समय में मैसूर राज्य ने शिक्षा , कृषि तथा उद्योग – धंधों के क्षेत्रों में सर्वाधिक विकास कार्य किये । मैसूर राज्य को सर्वसंपन्न बनाने के लिए उन्होंने अनेक नए उद्योग – धंधे चालू किए , रियासत का एक अपना बैंक स्थापित किया , सीमेंट , कागज , साबुन आदि के कारखाने खोले , मैसूर विश्वविद्यालय और भद्रावती का इस्पात कारखाना स्थापित किया ।
M. visvesvaraya biography in hindi
मैसूर के पास ही अपना निजी विश्वविद्यालय था । नौ वर्ष तक महत्त्वपूर्ण सेवा करने के बाद सन् 1918 ई . में उन्होंने इस पद से त्यागपत्र देकर डॉ . विश्वेश्वरैया एक बार पुनः विदेश भ्रमण पर निकले । इससे पूर्व की यात्राओं के समान इस यात्रा का उद्देश्य भी इसके तह तक जाना था कि दूसरे देश किस तरह विकास कर रहे हैं और उनकी कार्य – पद्धति से अपने देश को किस प्रकार उन्नत किया जा सकता है ।
परिणामतः दो वर्ष बाद जब वे लौटकर आए , तो उन्हें भारत सरकार की निर्माण कार्य संबंधी अनेक महत्त्वपूर्ण समितियों का सदस्य के रूप में नियुक्त की गई । इसमें से एक थी नई दिल्ली राजधानी समिति । इतना ही नहीं , कुछ समय बाद मैसूर राज्य की ओर से भी उन्हें भद्रावती कारखाने की स्थिति को सुधारने के लिए अनुरोध किया गया । उनका चयन इस कारखाने के निदेशक मंडल का अध्यक्ष के रूप में किया गया ।
उन्होंने कारखाने के प्रत्येक विभाग का अध्ययन किया और उसका पुनर्गठन कर एक लाभदायक संस्थान का रूप दे दिया । उन्होंने एक औद्योगिक संस्थान ‘ जय चाम राजेन्द्र आकूपेशनल इंस्टीट्यूट ‘ की स्थापना भी की । इस संस्थान में वर्तमान समय में भी कई उद्योगों की शिक्षा प्रदान की जा रही है । भद्रावती कारखाने में विश्वेश्वरैया के काम से टाटा बहुत प्रभावित हुए ।
उन्होंने विश्वेश्वरैया को अपने जमशेदपुर इस्पात कारखाने का डॉयरेक्टर बना दिया , जहां उन्होंने सन् 1955 ई . तक काम किया । भारत में नियोजित अर्थव्यवस्था के अनुसार कार्यरत विश्वेश्वरैया का स्थान सबसे पहले आता है । भारत में इस विषय पर उन्होंने प्रथम पुस्तक लिखी थी जो सन् 1934 ई . में प्रकाशित हुई । उनके महत्त्वपूर्ण कार्यों को देखकर समय – समय पर उन्हें कई सम्मानों से सम्मानित किया गया ।
M. visvesvaraya biography in hindi
सन् 1930 ई . में ही बम्बई विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया । इसके बाद तो लगभग एक दर्जन विश्वविद्यालयों ने उन्हें कई जानी – मानी उपाधियों से सम्मानित किया गया । भारत की ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘ सर ‘ की उपाधि दी और स्वतंत्र भारत के राष्ट्रपति डॉ . राजेन्द्रप्रसाद ने सन् 1955 ई . में उन्हें भारतरत्न का सर्वश्रेष्ठ में अलंकरण प्रदान किया ।
देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के फलस्वरूप भारतरत्न की सेवा से सम्मानित किया जाता है । यह सम्मान मुख्य रूप से उन्हें दिया जाता है जो कला , विज्ञान अथवा साहित्य जगत में महत्वपूर्ण योगदान देते है । डॉ . विश्वेश्वरैया प्रत्येक व्यक्तियों से यह कहा करते थे कि “ मेहनत करो , काम करो । इसी में देश का कल्याण है , सबकी भलाई है । हमारा देश पिछड़ा हुआ है क्योंकि हम लोग कामचोर हैं , आलसी हैं । अमेरिका और जापान देखते ही देखते कितना आगे बढ़ गये हैं ।
M. visvesvaraya biography in hindi
वे लोग हमसे अधिक मेहनती हैं इसीलिए हमसे आगे बढ़ गए हैं । ऐसी बात नहीं है कि ईश्वर ने उन लोगों को हमसे अच्छी बुद्धि दी है । ” प्रमाण खुद डॉक्टर विश्वेश्वरैया ने दिया । उनकी योग्यता और परिश्रम के आगे अंग्रेजों की भी झुकना पड़ा था । डॉ . विश्वेश्वरैया को आधुनिक मैसूर के जनक के रूप में जाना जाता है । वे सभी कार्यों को विधिवत् और भलीभांति करते थे ।
वे कठिन से कठिन समस्याओं का समाधान करने में पीछे नहीं हटते थे । मैसूर में भद्रावती इस्पात कारखाना , चंदन तेल और चंदन साबुन कारखाने , स्टेट बैंक ऑफ मैसूर , मैसूर राज्य में शिक्षा का विकास और विस्तार , बंगलौर में हिन्दुस्तान एयरक्रॉफ्ट फैक्टरी की 1935 ई . में स्थापना उसके उदाहरण हैं । उनके दीवान – काल में मैसूर राज्य में स्कूलों की संख्या 4,500 से बढ़कर 11000 हो गई ।
M. visvesvaraya biography in hindi
इस समय विद्यालयों में छात्र – छात्राओं की संख्या एक लाख 80 हजार से बढ़कर 3 लाख 66 हजार हो गई थी । उन्होंने मैसूर में महारानी कॉलेज को प्रथम श्रेणी का महिला कॉलेज बनवाया एवं छात्राओं हेतु पहले छात्रावास का भी निर्माण करवाया गया । डॉ . विश्वेश्वरैया ने कृषि विद्यालय , एक इंजीनियरिंग कॉलेज , एक यांत्रिक विद्यालय तथा प्रत्येक जिले में औद्योगिक विद्यालय का भी निर्माण किया ।
वर्तमान काल में किसी देश की प्रगति में उद्योगों के महत्त्व को अंगीकार कर उन्होंने इटली और जापान से रेशम विशेषज्ञों को आमंत्रित किया जिससे मैसूर में रेशम उद्योग को बहुत अधिक सफलता मिली । मैसूर का चंदन का तेल और चंदन – साबुन दुनियाभर में विख्यात है ।
उन्होंने धातु और चर्मशोध कारखाने मैसूर में स्थापित किये । उन्होंने पर्यटकों हेतु मैसूर और बंगलौर में अच्छे होटलों का निर्माण करने का सुझाव दिया । उन्होंने मैसूर राज्य रेलवे का भी निर्माण कराया था । डॉ . विश्वेश्वरैया की मृत्यु 14 अप्रैल सन् 1962 ई . में हो गई ।
M. visvesvaraya biography in hindi
जिस वक्त उनका निधन हुआ उस समय सम्पूर्ण भारत में उनके प्रति श्रद्धांजलियाँ अर्पित की गईं । भारत सरकार द्वारा उनके चित्र का डाक टिकट तैयार किया गया । भूतपूर्व राष्ट्रपति स्वं . डॉ . राजेन्द्र प्रसाद ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा था , “ एक ऐसा महान् व्यक्ति चल बसा है जिसने हमारे राष्ट्रीय जीवन के अनेक पहलुओं में अमूल्य योग दिया । “