Dilip Devidas Bhawalkar Biography in Hindi – दिलीप देवीदास भवालकर 2022

dilip devidas bhawalkar biography in hindi:- दिलीप देवीदास भवालकर का नाम वैज्ञानिकों की सूची में अलग से पहचाना जाता है । क्योंकि वह ‘ लेसर ‘ विषय में पी – एच . डी . करने वाले इंग्लैंड के पहले शोध छात्र बने । यह शोध उन्होंने इंग्लैंड के साउथेम्पटन विश्वविद्यालय से किया था ।

इस विलक्षण उपलब्धि के लिए उन्हें वहां रदरफोर्ड अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया था । जब भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र ने अपने संस्थान में लेसर गतिविधियां प्रारंभ करने की योजना बनाई तो इस क्षेत्र के लिए युवा वैज्ञानिकों की आवश्यकता पड़ी ।

स्वयं महान वैज्ञानिक डॉ . राजा रमन्ना ने इंग्लैंड जाकर डॉ . भवालकर का साक्षात्कार लिया । साक्षात्कार में उनका चयन कर लिया गया और वह 1 दिसंबर 1967 को भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में वैज्ञानिक अधिकारी बन कर मुंबई आ गए । यद्यपि इसके बाद उन्हें कई बार अमेरिका से बुलावा आया किंतु देश सेवा की भावना से ओतप्रोत डॉ . भवालकर भारत के होकर रह गए ।

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Dilip Devidas Bhawalkar Biography in Hindi

देश के लिए धन व शोहरत को नजरअंदाज करने वाले डॉ . भवालकर का जन्म 16 अक्टूबर 1940 को पुणे शहर में हुआ । उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सागर ( मध्य प्रदेश ) के सरकारी विद्यालयों प्राप्त की । उनके पिता डॉ . देवीदास भवालकर सागर विश्वविद्यालय में भौतिकी विभाग के संस्थापक अध्यक्ष थे और माता डॉ . वनमाला भवालकर संस्कृति विभाग में रीडर थी ।

इसलिए बचपन से ही डॉ . भवालकर को पढ़ने – लिखने का माहौल मिला था । उन्होंने 1961 में सागर विश्वविद्यालय में एम . एस – सी . की उपाधि स्वर्ण पदक के साथ प्राप्त की । शोधकार्य के लिए इंग्लैंड प्रस्थान तत्पश्चात वे पी – एच . डी . हेतु शोधकार्य के लिए इंग्लैंड चले गए ।

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वहां उन्होंने साउथेम्पटन विश्वविद्यालय से एम . एस . सी . की उपाधि ली और 1966 में पी – एच . डी . पूरी की । उनकी प्रतिभा व शिक्षण कला को देखकर उन्हें उसी विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य करने का अवसर मिल गया । उन्होंने पी – एच . डी . का शोधकार्य ‘ लेसर ‘ पर किया था । इस उपलब्धि के लिए उन्हें रदरफोर्ड सम्मान भी प्राप्त हुआ । 1967 में वह भाभा केंद्र में वैज्ञानिक अधिकारी के रूप में नियुक्त हुए ।

Dilip Devidas Bhawalkar Biography in Hindi

इस संस्थान में वह कई वर्षों तक सेवा करते रहे । 1984 में उन्हें इंजीनियरग विज्ञान का प्रतिष्ठित शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार मिला । उनके कैरियर की महान उपलब्धि 1984 के बाद शुरू हुई । निदेशक 1984 में इंदौर में भाभा अनुसंधान केंद्र की इकाई के रूप में प्रगत प्रौद्योगिकी केंद्र ‘ केट की स्थापना की गई । इसका उद्देश्य लेसर तथा त्वरक के क्षेत्र में वैज्ञानिक शोध व अनुसंधान करना था ।

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किंतु यहां वैज्ञानिक कार्यों की शुरुआत 1987 में हुई । डॉ . भवालकर को इस संस्थान में निदेशक के पद पर नियुक्त किया गया और वह 16 वर्षों तक इस संस्थान से जुड़े रहे । I उनके मार्गदर्शन व नेतृत्व में केट ने असाधारण प्रगति की संस्थान ने त्वरक जैसी जटिल व उच्च वैज्ञानिक सुविधाओं के प्रारूपण व निरूपण का कार्य किया । भारत की महत्वाकांक्षी त्वरक परियोजना ( इंडस -1 ) को केट में ही प्रारंभ किया गया ।

जबकि दूसरी ( इंडस -2 ) परियोजना 1997 में शुरू की गई । केट के माध्यम से संस्थान ने कई तरह के लेसर विकसित किए गए । इन लेसरों का उपयोग उद्योग , चिकित्सा व अनुसंधान में किया जाता है । संस्थान द्वारा शल्य क्रिया में काम आने वाली कार्बन डाई आक्साइड लेसर की कई मशीनें देश के विभिन्न अस्पतालों को दी जा चुकी हैं । गोयल अवॉर्ड डॉ . भवालकर के निर्देशन में केट के वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास किया । इनके नेतृत्व में केट अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुका है ।

Dilip Devidas Bhawalkar Biography in Hindi

केट को सफलता की ऊंचाई पर पहुंचाने के लिए 1997 में डॉ . भवालकर को भौतिकी का गोयल अवॉर्ड प्रदान किया गया तथा वर्ष 2000 में भारत सरकार उन्हें पद्मश्री पुरस्कार देकर सम्मानित किया । वह कई राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय समितियों के सदस्य है तथा भविष्य के त्वरकों की एशियाई कमेटी के अध्यक्ष भी बनाए गए है ।

वर्ष 2002-2003 में केट ने ही यूरोपीय काउंसिल फॉर न्यूक्लीयर रिसर्च द्वारा जेनेवा में स्थापित किए जा रहे दुनिया के सबसे बड़े त्वरक लार्ज हेडरॉन कोलाइडर ( एल एच सी ) के निर्माण में लगने वाले 2000 से अधिक अतिचालक चुंबकों की आपूर्ति की थी । ये चुंबक अंतर्राष्ट्रीय मापदंडों पर प्रमाणिक रहे हैं । लंदन में निर्माणाधीन त्वरक ( एक्सेलेटर ) के लिए भी केट के वैज्ञानिकों से परामर्श लिया है ।

केट संस्थान को अंतर्राष्ट्रीय ऊंचाईयों पर ले जाने और विज्ञान में अभूतपूर्व योगदान के लिए उन्हें एच . के . फिरोदिया अवॉर्ड प्रदान किया गया । यह अवॉर्ड विज्ञान व प्रौद्योगिकी में उत्कृष्टता के लिए दिया जाता है । डॉ . भवालकर केट को इन ऊंचाइयों पर ले जाने के बाद 31 अक्टूबर 2003 को सेवामुक्त हो गए ।

Dilip Devidas Bhawalkar Biography in Hindi

अब वह विज्ञान प्रसार – प्रचार तथा शोध व लेखन कार्यों में लगे हुए हैं । कहा जाता है कि उन्होंने इंदौर के सुखनिवास की बंजर जमीन को एक वैज्ञानिक तीर्थ में रूपांतरित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है ।