Meghnad Saha Biography in Hindi – मेघनाद साहा जीवनी 2022

Meghnad Saha Biography in Hindi:- भौतिकविद् मेघनाद साहा का जन्म 6 अक्टूबर , 1893 को ढाका ( अब बांग्ला देश में ) जिले के सिओराताली गांव में हुआ था । वह अपने पिता जगन्नाथ साहा की संतानों में पांचवें नंबर पर थे । पिछड़ी जाति के कहलाने वाले इस परिवार का गुजारा बहुत मुश्किल से चलता था । किंतु बालक मेघनाद बचपन से ही स्वाभिमानी , दृढ़ निश्चय वाले थे ।

उन्हें पढ़ने में विशेष रुचि थी । वह प्राय : भौतिकी , विज्ञान आदि विषयों की पुस्तकें पढ़ते रहते थे । किंतु उनके पिता उनकी पढ़ाई का व्यय नहीं उठा सकते थे । शिक्षा यद्यपि उनका परिवार गरीब था किंतु अपनी रुचि के कारण उन्होंने गांव के ही पांचवी तक की पढ़ाई पूरी की । उनकी प्रतिभा व बुद्धि को देख उनके एक पड़ोसी ने उन्हें आठवीं कक्षा तक पढ़ाने का दायित्व उठा लिया ।

Meghnad Saha Biography in Hindi

साहा पढ़ने के साथ – साथ उसके काम भी किया करते थे । अपनी मेहनत के दम पर उन्होंने आठवीं कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया । परिणामस्वरूप उन्हें छात्रवृत्ति भी मिलने लगी । आठवीं के बाद वह उच्च शिक्षा के लिए ढ़ाका चले गए । वहां भी उन्हें उच्च परीक्षाओं में प्रथम आने पर छात्रवृत्ति मिली । वहां उन्होंने जे . सी . बोस एवं पी . सी . राय जैसे वैज्ञानिकों से शिक्षा प्राप्त की ।

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वहीं एस . एन . बोस व महालनोबीस जैसे भावी वैज्ञानिक उनके भी सहपाठी रहे । वह स्वतंत्रता आंदोलन का दौर था और एक अंग्रेज अध्यापक का अपमान करने पर उन्हें शेष छात्रों के साथ स्कूल से निकाल दिया गया । किंतु उन सभी ने एक अन्य विद्यालय में प्रवेश ले लिया ।

यहीं से वह विज्ञान के प्रति आकर्षित हुए । 1913 में उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी . एस . सी . की परीक्षा पास की । इस परीक्षा में एस . एन . बोस प्रथम तथा साहा द्वितीय स्थान पर रहें । इसी विश्वविद्यालय से उन्होंने 1915 में एम . एस . सी . की उपाधि भी प्राप्त की ।

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कैरियर

कलकत्ता विश्वविद्यालय से एम . एस – सी . करने के बाद उन्होंने ‘ इंडियन फाइनेंस सर्विस ‘ में नौकरी करनी चाही , किंतु वह सफल न हो सके । 1916 में कुलपति आशुतोष मुखर्जी ने उन्हें व एस . एन . बोस को कलकत्ता के यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ साइंस के गणित विभाग में गणित के लेक्चरर पद पर नियुक्ति दिलवा दी ।

गणित विभाग की अव्यवस्था को दूर करने में उन्हें काफी कठिनाइयां सामने इसी दौरान साहा ने आइंस्टान के ‘ सापेक्षता व क्वांटम ‘ के सिद्धांत का जर्मन से अंग्रेजी भाषा में अनुवाद भी किया । जर्मन भाषा का ज्ञान उन्होंने 1909 में ढाका कॉलेज में अध्ययन के दौरान प्राप्त किया था , क्योंकि वहां जर्मन भाषा पढ़ना अनिवार्य था ।

यद्यपि साहा अंग्रेजों के विरोधी थे किंतु उन्होंने गणित व विज्ञान में उच्च स्तरीय कार्य किए थे जिस के कारण लंदन विश्वविद्यालय ने 1918 में उन्हें डी . एस . सी . की मानद उपाधि देकर सम्मानित किया । इसी समय भौतिक संबंधी एक निबंध पर आपको प्रेमचंद रामचंद पुरस्कार भी दिया गया ।

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साहा की अनुसंधान संबंधी उपलब्धियां

उन्होंने भौतिकी की अनेक समस्याओं को हल करने के लिए कई सिद्धांत प्रतिपादित किए । उन्होंने ‘ आयनीकरण सिद्धांत ‘ ( आयोनाईसेशन फार्मूला ) को आगे बढ़ाया , जिससे स्पेक्ट्रम में स्पेक्ट्रा रेखाओं के महत्व को समझना संभव हुआ । इससे सूर्य व अन्य तारों के आंतरिक भागों के तापमान , दबाव तथा अन्य पक्षों को भी ज्ञात करने में अंतरिक्ष यात्रियों की मदद मिली थी ।

यह ‘ एस्ट्रोफिजिक्स ‘ क्षेत्र में एक महान उपलब्धि थी । यह खोज विज्ञान जगत की बारहवीं अद्भुत खोज मानी गई । 1921 में इंग्लैंड के इंपीरियल कॉलेज ऑफ साइंस के प्रो . फाउलर तथा जर्मनी के प्रो . नन्सर्ट की प्रयोगशाला में उन्होंने कई महत्वपूर्ण खोजें भी कीं ।

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इस बीच उन्होंने 1921-23 तक कोलकाता विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफेसर के पद पर कार्य किया 1923-33 तक वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय में वह भौतिकी के प्रोफेसर के पद पर कार्य करते रहे तथा तत्पश्चात अध्यक्ष के रूप में कार्य करते रहें ।

इस दौरान उनकी उपलब्धियों के कारण 1927 में उन्हें रॉयल सोसायटी का सदस्य मनोनीत किया गया । 1938 में उन्हें पुनः कोलकाता विश्वविद्यालय के सॉइस कालेज में भौतिकी के पालित प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति मिली । वह इस पद पर 1952 तक कार्य करते रहे ।

उन्होंने एस्ट्रोफिजिक्स के क्षेत्र में भारत की व अपनी अलग पहचान बनाई । वह परमाणु ऊर्जा के कार्यक्रमों में अग्रणीय रहे । जबकि उनकी महत्वपूर्ण उपलब्धि अणुओं का थर्मल आयनीकरण ( आयतन ) का सिद्धांत है , जो कि खगोल शास्त्र के क्षेत्र में एक अति शक्तिशाली उपकरण माना जाता है । विश्व प्रसिद्धि इस सिद्धांत के द्वारा तारों के भौतिक गुणों को स्पष्ट कर उनके रहस्यों को खोला जाना सरल हो गया ।

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इस सिद्धांत को तारों के वर्णक्रम पर लगा कर उन्होंने आणविक व परमाणविक वर्णक्रम संबंधी अनेक गुत्थियों को सुलझाया । इनके अनुसंधान से सूर्य व उसके चतुर्दिक अंतरिक्ष में होने वाली प्राकृतिक घटनाओं में से मुख्य के कारण ज्ञात किए गए ।

इन खोजों से वह विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक बन गए

साहा ने चट्टानों की आयु मापने की विधि के अलावा रेडियो तरंगों के विषय में भी खोज व शोध किया तथा 1940 में ओटोहोन के परमाणु बम शोध कार्य पर अणु विखंडन विधि पर भी शोध कार्य किया । उन्होंने 1948 में ‘ इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर फिजिक्स ‘ की स्थापना की तथा उसके संचालक रहे । उन्होंने साइक्लोट्रान नामक विदेशी संयंत्र को 1950 में अपने संस्थान में लगवाया ।

संस्थान व भारत के लिए यह महत्वपूर्ण कदम था , क्योंकि यह एक संयंत्र भारत में पहली बार स्थापित किया गया था । 1947 में देश स्वतंत्र हुआ और संसद ने कैलेंडर संशोधन समिति गठित की तो उन्हें उसका अध्यक्ष बनाया गया । साहा उस समय लोकसभा में निर्दलीय सदस्य के रूप में भी सेवाएं प्रदान कर रहे थे ।

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1952 से 1956 तक उन्होंने ‘ इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस ‘ में डॉयरेक्टर के पद पर कार्य किया । इसी अवधि में 16 फरवरी 1956 को संसद भवन के निकट हृदयगति रुकने के कारण उनका देहांत हो गया । फेलोशिप व संस्थानों की सदस्यता मेघनाथ साहा ने खगोल शास्त्र से संबंधित लगभग सभी ग्रंथों का अध्ययन किया था ।

आणविक व परमाणविक तथा खगोलीय क्षेत्र में उन्होंने जो उल्लेखनीय योगदान दिया उसी के कारण उन्हें कई संस्थानों से फेलोशिप भी मिलीं । मात्र 34 वर्ष की अल्प आयु में ही इंग्लैंड की रॉयल सोसायटी ने उन्हें अपना फेलो बना लिया था । इसके अलावा अमेरिकन एकेडमी ऑफ आर्ट्स एंड साइंसेस , एस्ट्रोनॉमिकल फेलोशिप प्रदान की थी ।

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1930 में वह एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल के फेलो रहे तथा 1944-46 तक यहां सभापति के रूप में कार्य करते रहे । 1934 में इंडियन साइंस कांग्रेस ने उन्हें अपना सभापति मनोनीत किया । इंग्लैंड के इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिक्स तथा अंतर्राष्ट्रीय ज्योति सभा ने भी उन्हें अपना सदस्य बना कर सम्मानित किया था । 1937-38 में वह इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी के अध्यक्ष भी रहे ।

उन्होंने कई वैज्ञानिक संस्थाओं की स्थापना व विस्तार में अपना सक्रिय योगदान दिया । साहा ने 1930 में इलाहाबाद में विज्ञान एकेडमी की स्थापना की । इसे अब नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस के नाम से जाना जाता है । वह 1935 में दिल्ली में एक विज्ञान संस्थान तथा 1938 में इंडियन साइंस न्यूज एसोसिएशन के संस्थापक भी रहे । 1948 में कलकत्ता में इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लीयर फिजिक्स की स्थापना उनके कैरियर में मील का पत्थर थी । वह इसके संस्थापक निदेशक बनें थे ।

इनके अलावा उन्होंने दि इंडियन फिजिकल सोसायटी की भी स्थापना की तथा इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस के विस्तार में सराहनीय योगदान दिया । 1922 उन्होंने कोलकाता में इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलिक्स एंड रिवर रिसर्च ऑफ बंगाल ‘ की भी स्थापना की ।

Meghnad Saha Biography in Hindi

विज्ञान साहित्य का प्रचार व संपादन 1934 में साहा के द्वारा ‘ साइंस एंड कल्चर ‘ नामक मासिक पत्रिका का प्रारंभ किया गया । उन्होंने विज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए इस पत्रिका के अलावा अन्य जर्नलों के भी कई लेख लिखें और संपादन भी किया । उन्होंने सत्येंद्रनाथ बोस के साथ मिल कर ‘ द प्रिंसिपल ऑफ रिलेटिविटी ‘ की रचना की तथा बी . एन . श्रीवास्तव के साथ संयुक्त रूप से ‘ ए टेक्स्ट बुक ऑफ हीट ‘ लिखी ।

1958 तक इसके चार संस्करण प्रकाशित हुए । विश्व में इन पुस्तकों को विज्ञान शिक्षा में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ । एक सामाजिक विज्ञानी के रूप में साहा साहा की रुचि विज्ञान के साथ – साथ अन्य कई क्षेत्रों में भी थी । 1930 में जब सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस अध्यक्ष थे , तब साहा ने राष्ट्रीय नियोजन की नींव रखी ।

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उन्होंने दामोदर नदी में आने वाली भीषण बाढ़ का स्वयं निरीक्षण किया तथा उनके प्रति सरकार का ध्यान आकर्षित किया । उनके प्रयासों ही इस उफनती नदी पर जो बांध बना था वह अमेरिका की टेनेसी नदी के बांध जैसा ही था । इससे क्षेत्र की कृषि , बिजली , पानी व बाढ़ की कई समस्याएं हल हो सकीं थीं ।

वह देश की कई प्रयोगशालाओं की स्थापना व उनके आधुनिकीकरण में सहयोगी भी रहे थे । वह पुरातनपंथी विचारों व धार्मिक कट्टरता के घोर विरोधी थे । उन्होंने टैगोर द्वारा आयोजित एक व्याख्यानमाला ‘ जीवन का एक नया दर्शन ‘ में विज्ञान व अध्यात्म पर छिड़ी बहस को स्पष्ट किया । कुल मिलाकर साहा जीवन के प्रत्येक विषय में अपनी गहरी पैठ रखते थे जो उनके लेखों में स्पष्ट दिखाई देती हैं ।