K. S. Krishnan Biography in Hindi- के एस कृष्णन जीवनी 2022

K. S. Krishnan Biography in Hindi :- के . एस . कृष्णन के . एस . कृष्णन भारत के एक प्रख्यात भौतिक विज्ञानी थे । उनका पूरा नाम करियामणिक्कम श्रीनिवास कृष्णन था । उनका जन्म 4 दिसंबर 1898 को तमिलनाडु के रमणाड़ जिले में हुआ था । इनके पिता का नाम करियामणिक्कम श्रीनिवास था ।

उनकी प्रारंभिक शिक्षा मद्रास में हुई । उन्होंने मद्रास के क्रिश्चियन कॉलेज से बी . एस . सी . की पढ़ाई पूरी की और एम . एस . सी . की पढ़ाई के लिए 1920 में कलकत्ता चले गए । कलकत्ता के यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ साइंस से उन्होंने एम . एस . सी की डिग्री ली ।

K. S. Krishnan Biography in Hindi

K. S. Krishnan Biography in Hindi :- उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास से 1925 में एम . एस . सी . की शिक्षा पूरी की । कलकत्ता में एम . एस – सी . की शिक्षा प्राप्त करने के दौरान ही वह कलकत्ता स्थित इंडियन एसोसिएशन फॉर कल्टीवेशन ऑफ साइंस से जुड़े और यहां उन्होंने 1923-1928 तक अनुसंधान कार्य किए ।

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यहां उन्हें 1923 में भारत के नोबल पुरस्कार वैज्ञानिक सी . वी . रमन के साथ काम करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । उनके चरित्र पर सी . वी . रमन का काफी प्रभाव पड़ा । यहां रिसर्च एसोसिएट के तौर पर कार्य करने से पूर्व उन्होंने 1918 से 1920 तक मद्रास के क्रिश्चियन कॉलेज में डेमोस्ट्रेटर के रूप में भी कार्य किया ।

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भौतिकी के रीडर इस प्रयोगशाला में कार्य करने के पश्चात वह भौतिकी के रीडर बन कर ढाका विश्वविद्यालय चले गए , जहां उन्होंने 1933 तक कार्य किया । 1933 में वह कलकत्ता चले गए । वहां उन्होंने पुन : इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंसेस में महेंद्रलाल सिरचर रिसर्च प्रोफेसरशिप में कार्य किया । उसके बाद वह 1940 से 1947 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग से जुड़े रहे ।

यहां उन्होंने प्रोफेसर के रूप में कार्य प्रारंभ किया और बाद में उन्हें इसी विभाग का विभागाध्यक्ष बना दिया गया । कहा जाता है कि इस बीच उन्होंने 1936 में शोध कार्यों के लिए इंग्लैंड का दौरा भी किया था । 1947 में जब दिल्ली में राष्ट्रीय भौतिको प्रयोगशाला ने कार्य प्रारंभ किया तो वह इसके प्रथम निदेशक बने ।

1961 किया गया । में इस प्रयोगशाला के बाद उन्हें परमाणु ऊर्जा आयोग के सदस्य के रूप में शामिल डी . एस – सी . की उपाधि 1923 से 28 तक जब उन्होंने कलकत्ता स्थित इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस के साथ जुड़ कर कार्य किया तो उनकी प्रतिभा व योगदान के लिए मद्रास विश्वविद्यालय ने उन्हें डी . एस – सी . की उपाधि प्रदान की ।

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ढाका विश्वविद्यालय में कार्य के दौरान उन्होंने सी . वी . रमन के साथ ‘ रमन प्रभाव ‘ की खोज में सहयोग व महत्वपूर्ण योगदान दिया । प्रकाशिकी एवं मणिभ पर चुंबकीय प्रभाव संबंधी उनके खोज कार्य को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया । इनके भौतिकी ज्ञान से अमेरिकी वैज्ञानिक भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके । इनके अनुसंधान संबंधी अनेक निबंधों को ट्रांसैक्शन एंड प्रोसीडिंग्स ऑफ रॉयल सोसायटी में प्रकाशित किया गया ।

उन्होंने इस विचार की जांच के लिए परिष्कृत व तार्किक प्रयोगात्मक विधि का विकास किया कि प्रति चुंबकीय या अनुचुंबकीय क्रिस्टल की चुंबकीय विषमदेशिता किसी एकल परमाणु की विषमता तथा उससे संबंधित पुर्वाभिमुखीकरण से पारस्परिक रूप से संबंधित हो सकती है । रॉयल सोसायटी के फेलो 1940 में लंदन की रॉयल सोसायटी ने इन्हें अपना फेलो चुना ।

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इससे पूर्व 1936 में जब इन्होंने इंग्लैंड में शोध कार्य किया था तो इनकी उपलब्धि के लिए 1937 में इन्हें लीग यूनिवर्सिटी मंडल से सम्मानित किया गया था । रॉयल सोसायटी का फेलो बनने के बाद 1941 में भारत में उन्हें कृष्णा राजेंद्र जुबली गोल्ड मेडल प्रदान किया गया । इन्होंने अनेक धातुओं व क्रिस्टलों पर अनुसंधान कार्य किया और उनके गुणों के समाधान के नए समीकरण तैयार किए ।

उनकी इस उपलब्धि की धूम देश के साथ साथ विदेशी वैज्ञानिकों में भी फैलीं और 1946 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें नाइट की उपाधि देकर सम्मानित किया और वह ‘ सर ‘ कहलाए जाने लगे । रॉयल सोसायटी के अलावा वह कई संस्थाओं के फेलो भी रहे । इनमें यू . एस . ए . की नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस शामिल है । इसके अलावा उन्होंने कई संस्थाओं की स्थापना में भी अपना योगदान दिया और उसके संस्थापक फेलो बने रहे ।

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इनमें इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी ( 1945-46 ) तथा लंदन के इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिक्स और इंस्टीट्यूट ऑफ मेटल प्रमुख है । उन्हें देश विदेश की संस्थाओं ने सम्मान स्वरूप अपनी सदस्यता प्रदान की । 1945-46 में वह राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के अध्यक्ष चुने गए ।

इससे पूर्व 1939-41 तक वह भारतीय विज्ञान अकादमी के उपाध्यक्ष भी रहे । 1949 में इंडियन साइंस कांग्रेस एसोसिएशन के अध्यक्ष बनें । 1945-56 तक की अवधि में वह नेशनल एकेडमी ऑफ साइसेंस के अध्यक्ष पद पर बने रहे और 1953-54 में उन्होंने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइसेंस के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया ।

वह भारतीय वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद के संचालक मंडल के सदस्य भी रहे । उन्होंने कई अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया । वह 1955 में ‘ यूनेस्को वैज्ञानिक सलाहकार समिति ‘ के अध्यक्ष भी रहे । उन्हें कई वैज्ञानिक पत्र पत्रिकाओं से जुड़े रहने का भी मौका मिला । वह आई सी यू एस रिव्यू के संपादक मंडल के सदस्य रहे ।

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उन्होंने जर्नल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च के संपादन मंडल में भी भागीदारी की । प्रोग्रेस इन ऑप्टिकल सीरिज के संपादक मंडल के सलाहकार के रूप में भी उन्होंने कार्य किया । अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई उपलब्धियां हासिल कीं , जिसके लिए उन्हें समय – समय पर सम्मान प्रदान किए जाते रहे ।

1937 में लीग यूनिवर्सिटी मेडल , 1941 में कृष्णा राजेंद्र जुबली गोल्ड मेडल , 1946 में ब्रिटिश सरकार द्वारा नाइट की उपाधि , 1954 में रमन प्रभाव की खोज में सी . वी . रमन का सहयोग , 1955 में पद्मभूषण , 1958 में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार आदि पुरस्कार देकर उन्हें सम्मानित किया गया ।

दिल्ली , इलाहाबाद , बनारस , लखनऊ , कलकत्ता तथा जादवपुर विश्वविद्यालयों ने उनकी महत्वपूर्ण सेवाओं व अनुसंधान कार्यों के लिए उन्हें डी . एस . सी . की मानद उपाधि प्रदान की । भारत का नाम भौतिकी के क्षेत्र में विश्व स्तर पर लाने वाले डॉ . कृष्णन ने 14 जून 1961 को इस संसार को अलविदा कह दिया ।