Jagadish Chandra Bose Biography in Hindi-जगदीशचंद्र बोस 2022

Jagadish chandra bose biography in hindi:- भारत के महान सुप्रसिद्ध वनस्पति एवं भौतिकशास्त्री डॉ . जगदीश चन्द्र बोस का जन्म 30 नवम्बर 1885 ई . को बंगाल में मेमनसिंह नामक स्थान पर हुआ था । इन्होंने एक ऐसे उपकरण अथवा यंत्र की खोज की जिससे भली – भांति ज्ञात किया जा सकता था कि सजीव प्राणी बाह्य उद्दीपन के प्रति प्रतिक्रिया करते हैं ।

इस कारण प्राणी एवं पादप ऊतकों के बीच की समानता का पूर्वानुमान लगाने में बोस सफल रहे , जिस पर बाद के जैव भौतिकशास्त्री ने भी ध्यान दिया । अति लघु रेडियो तरंगों के अर्द्ध प्रकाशीय गुणों पर बोस द्वारा किए गए प्रयोगों ( 1895 ) के कारण वह रेडियो डिटेक्टर के पूर्ववर्ती स्वरूप , कोहेरर में कुछ सुधार करने में सक्षम रहे , जिसने भौतिक विज्ञान के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया ।

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प्रारम्भिक जीवन एवं शिक्षा बसु का जन्म बंगाल ( अब बांग्लादेश ) में मेमनसिंह में हुआ था । इनके पिता भगवान चन्द्र वसु ब्रह्म समाज के नेता थे और फरीदपुर , वर्धमान एवं अन्य जगहों पर उप – मैजिस्ट्रेट या सहायक कमिश्नर थे । इनका परिवार रारीखाल गांव , विक्रमपुर से आया था , जो आजकल बांग्लादेश के मुन्शीगंज जिले में है । बसु की शिक्षा एक बांग्ला विद्यालय में प्रारंभ हुई ।

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इनके पिता मानते थे कि अंग्रेजी सीखने से पहले अपनी मातृभाषा अच्छे से आनी चाहिये । विक्रमपुर में सन् 1915 में एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए बसु ने कहा- ” उस समय बच्चों को अंग्रेजी विद्यालयों में भेजना हैसियत की निशानी माना जाता था । मैं जिस बांग्ला विद्यालय में भेजा गया वहाँ पर मेरे दायीं तरफ मेरे पिता के मुस्लिम परिचारक का बेटा बैठा करता था और मेरी बाई ओर एक मछुआरे का बेटा ।

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ये ही मेरे खेल के साथी भी थे । उनकी पक्षियों , जानवरों और जलजीवों की कहानियों को मैं कान लगा कर सुनता था । शायद इन्हीं कहानियों ने मेरे मस्तिष्क में प्रकृति की संरचना पर अनुसंधान करने की गहरी रुचि जगाई । “

रेडियो की खोज

Jagadish chandra bose biography in hindi :- ब्रिटिश सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी जेम्स क्लर्क मैक्सवेल ने गणितीय रूप से विविध तरंग दैर्धूय की विद्युत चुम्बकीय तरंगों के अस्तित्व की भविष्यवाणी की थी , पर उनकी भविष्यवाणी के सत्यापन से पहले सन् 1879 में निधन उनका हो गया ।

ब्रिटिश भौतिकविद ओलिवर लॉज मैक्सवेल तरंगों के अस्तित्व का प्रदर्शन सन् 1887-88 में तारों के साथ उन्हें प्रेषित करके किया । जर्मन भौतिकशास्त्री हेनरिक हर्ट्ज ने 1888 ई . में मुक्त अंतरिक्ष में विद्युत चुम्बकीय तरंगों के अस्तित्व को प्रयोग करके दिखाया । इसके बाद , लॉज ने हर्ट्ज का काम जारी रखा और जून 1894 ई . में एक स्मरणीय व्याख्यान दिया ( हर्ट्ज की मृत्यु के बाद ) और उसे पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया ।

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लॉज के काम ने भारत के बोस सहित विभिन्न देशों के वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित किया । बोस के माइक्रोवेव अनुसंधान का पहली उल्लेखनीय पहलू यह था कि उन्होंने तरंग दैर्ध्य को मिलीमीटर स्तर पर ला दिया ( लगभग 5 मिमी तरंग दैर्ध्य ) । वे प्रकाश के गुणों के अध्ययन के लिए लंबी तरंग दैध्य की प्रकाश तरंगों के नुकसान को समझ गए ।

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सन् 1893 में , निकोला टेस्ला ने पहले सार्वजनिक रेडियो संचार का प्रदर्शन किया । एक साल बाद , कोलकाता में नवम्बर 1894 के एक ( या 1895 ) सार्वजनिक प्रदर्शन दौरान , बोस ने एक मिलीमीटर रेंज माइक्रोवेव तरंग का उपयोग बारूद दूरी पर प्रज्वलित करने और घंटी बजाने में किया ।

लेफ्टिनेंट गवर्नर सर विलियम मैकेंजी ने कलकत्ता टाउन हॉल में बोस का प्रदर्शन देखा । बोस ने एक बंगाल ‘ अदृश्य आलोक ‘ में लिखा था , ‘ अदृश्य प्रकाश आसानी से ईंट की दीवारों , भवनों आदि के भीतर से जा सकती है , इसलिए तार की बिना प्रकाश के माध्यम से संदेश संचारित हो सकता है ।

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‘ रूस में पोपोव ने ऐसा ही एक प्रयोग किया । बोस ‘ डबल अपवर्तक क्रिस्टल द्वारा बिजली की किरणों के ध्रुवीकरण पर पहला वैज्ञानिक लेख , लॉज लेख के एक साल के भीतर , मई 1895 में बंगाल की एशियाटिक सोसाइटी को भेजा गया था । उनका दूसरा लेख अक्टूबर 1895 में लंदन की रॉयल सोसाइटी को लाई रेले द्वारा भेजा गया ।

दिसम्बर 1895 में , लंदन पत्रिका इलेक्ट्रीशियन ( 36 टवस ) ने बोस का लेख ‘ एक नए इलेक्ट्रो – पोलेरीस्कोप पर जगदीशचंद्र बोस 11 प्रकाशित किया । उस समय अंग्रेजी बोलने वाली दुनिया में लॉज द्वारा गढ़े गए शब्द “ कोहिरर ” क प्रयोग हर्ट्ज के तरंग रिसीवर या डिटेक्टर के लिए किया जाता था । इलेक्ट्रीशियन ने तत्काल बोस के “ कोहिरर ” पर टिप्पणी की ( दिसम्बर 1895 ) ।

अंग्रेजी पत्रिका ( 18 जनवरी 1896 ) इलेक्ट्रीशियन से उद्धृत टिप्पणी है । सन् 1884 में केब्रिज विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने के उपरान्त यानी 1885 में बोस कलकत्ता के प्रेजिडेंसी कॉलेज में भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर बने ओर उस पद को सन् 1915 तक सुशोभित करते रहे । सन् 1917 में उन्होंने बोस रिसर्च इंस्टिट्यूट की स्थापना की और इसका निर्देशन सन् 1937 तक किया ।

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इसी वर्ष उनकी 28 नवम्बर सन् 1937 को भारत के बिहार राज्य के गिरिडीह नामक स्थान पर इनकी मृत्यु हो गयी । अपने शोध को सुगम बनाने के लिए उन्होंने स्वचालित रिकॉर्डर बनाए , जिससे अति सूक्ष्म गतिविधियों का भी प्रेक्षण लिया जा सके । इन यंत्रों के कारण कुछ अनोखे परिणाम सामने आए ।

बोस ने सिद्ध किया कि पौधे महसूस कर सकते हैं और यह उन्होंने एक घायल पौधों में हुए कंपन द्वारा प्रदर्शित किया । उनकी पुस्तकों में रिस्पान्स । इन द लिविंग एंड नॉन लिविंग ( 1902 ) और द नर्वस मेकैनिज्म ऑफ प्लांट्स ( 1926 ) शामिल हैं ।