नमस्कार दोस्तों स्वागत हैं आपका हमारे पोस्ट में आज हम आपको इसकी पूरी जानकारी देंगे की आखिर गुरुत्वाकर्षण की खोज किसने की? या गुरुत्वाकर्षण क्या है ? तो अगर आप इन सभी शब्दों को पहली बार सुन रहे है तो आप आखिर तक इनका अर्थ भी समझ ही जाएंगे ।
वैसे तो गुरुत्वाकर्षण एक बल है जो की संसार में पहले से विद्यमान हैं , इसलिए इसका आविष्कार तो नहीं किया जा सकता परंतु इसके गुणधर्मों तथा इसमे निहित बल उत्पन्न कैसे होता है यह जानना हमारे लिए अति आवश्यक है क्योंकि विज्ञान केवल दो चीजों पर टीका होता है – पहला है भूतकाल और दूसरा भविष्यकाल ! अर्थात ” जो भूतकाल से निहित है उसमे शोध करके भविष्य मे उसे नए आयाम तक पहुंचना ही विज्ञान है।
अगर हम गुरुत्वाकर्षण बल की बात करें तो इसका केवल नामकरण तथा तथा सूत्र उत्पत्ति की गई है, क्योंकि यह बल प्रकृति प्रदत्त है। तो मुद्दा यह है की गुरुत्वाकर्षण की खोज किसने की ? तो मै आपको बताना चाहूँगा की हमे विद्यालयों मे तो यही बताया जाता है की इसकी खोज तथा इसके नियम व सूत्रोतपत्ति न्यूटन साहब ने की ! लेकिन विस्तार से आगे पढ़ें :-
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अनुक्रम
गुरुत्वाकर्षण क्या है?
दोस्तों गुरुत्वाकर्षण एक तरह का बल है जिसमे यह कहा गया है की ब्रम्हांड में उपस्थित प्रत्येक कण चाहे वह अणु हो परमाणु हो या वस्तु जो भी हो, वह सारे एक दूसरे पर बल आरोपित करते है, जिसे गुरुत्वाकर्षण बल कहते हैं। इसे गुरुत्वाकर्षण नाम वैज्ञानिक आइजक न्यूटन ने दिया, उन्होंने ही इसके कुछ नियम दिए जिन्हे सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का नियम कहते हैं।
गुरुत्वाकर्षण के कई सारे उदाहरण हम अपने दैनिक जीवन मेँ रोज देखते है।
भले हम उस पर ध्यान नहीं देते वो बात अलग है। जैसा कि हम क्रिकेट खेलते है तो वह खेल तो पूरी तरह गुरुत्वाकर्षण पर ही आधारित है, जब हम गेंद को बल्ले से मारते है तो वह कुछ फिर ऊपर उठ कर फिर से धरती पर गिरने लगता है क्या अपने कभी सोचा कि ऐसा क्यों होता है ? यहीं पर यह बल कार्य करता है जो कि किसी भी वस्तु पर जिसका अपना द्रव्यमान हो उसे आकर्षण करता है। और इसीलिए गेंद जो कि इतनी ऊपर चली गई थी वह कुछ ही देर मे भूमि मेँ गिर जाती है।
अगर यहाँ गुरुत्वाकर्षण बल काम न करता तो वह गेंद उसी रफ्तार से ऊपर जाती रहती जब तक वह किसी और चीज से टकरा नहीं जाता । अब तो आप समझ ही गए होंगे कि इस बल का हमारे जीवन मे कितना ज्यादा महत्व हैं। आज तो इसी गुरुत्वाकर्षण बल के नियम के उपयोग से ही अंतरिक्ष मेँ रॉकेट भेजे जाते है , एरोप्लेन चालते है और बहुत सारे कार्यों को अंजाम दिया जाता है। तो चलिए जानते है कि इसके खोज का इतिहास क्या है ?
गुरुत्वाकर्षण की खोज का इतिहास?
वैसे तो गुरुत्वाकर्षण का बल सर्वत्र विद्यमान है जो कि काभी नष्ट नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह प्रकृति प्रदत्त है। जब हम इसे नहीं जानते थे तब भी यह इस संसार मेँ उपस्थित था और आज हम जब इसे जान गए है तब भी यह सर्वत्र विद्यमान है। परिवर्तन केवल इतना है कि हमने इसके बारे मे जानकार इसके अनुकूल कार्य करने वाले यंत्रों तथा उपकरणों का आविष्कार कर लिया है जो कि मानव जीवन को सरल बनाते है।
गुरुत्वाकर्षण की खोज का इतिहास कि बात करें तो हमे कितबों मेँ तो केवल यही पढ़ाया जाता है कि कि गुरुत्वाकर्षण बल कि खोज आइजक न्यूटन ने कि तथा इसके सार्वत्रिक नियम दिए। लेकिन यह पूरा सत्य नहीं है क्योंकि न्यूटन भाई साहब ठहरे 1643 – 1727 ई.पू. वाले ! और हमारे पास भारतीय संस्कृति मेँ इस बात का एक नहीं बल्कि 3 प्रमाण उपस्थित है कि इसकि खोज भारत मे हुई। जानते है कि भारत मे किसने गुरुत्वाकर्षण को खोजा।
वराहमिहिर नामक एक महान खगोलशास्त्री
वराहमिहिर, जिसे वराह या मिहिर भी कहा जाता है, एक प्राचीन भारतीय ज्योतिषी, खगोलशास्त्री और बहुश्रुत थे जो उज्जैन में रहते थे। उनका जन्म अवंती क्षेत्र के कायथा में हुआ था, जो लगभग आधुनिक मालवा के आदित्यदास के अनुरूप था। उनके अपने कार्यों में से एक के अनुसार, उनकी शिक्षा कपित्थक में हुई थी।
आइजैक न्यूटन के जन्म से सैकड़ों साल पहले हमारे भारतीय गुरुत्वाकर्षण के बारे में जानते थे। प्राचीन काल में 505-587 के समय में वराहमिहिर नामक एक महान खगोलशास्त्री और गणितज्ञ थे, जिन्होंने वर्षों पहले गुरुत्वाकर्षण की व्याख्या की थी, लेकिन उन्होंने न्यूटन की तरह गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को कोई नाम नहीं दिया। इस कारण सारा श्रेय सर आइजैक न्यूटन को जाता है।
ब्रह्मगुप्त द्वारा गुरुत्वाकर्षण का ज्ञान!
ब्रह्मगुप्त एक भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे। वह गणित और खगोल विज्ञान पर दो प्रारंभिक कार्यों के लेखक हैं: ब्रह्मस्फुशसिद्धांत, एक सैद्धांतिक ग्रंथ, और खकखाद्यक, एक अधिक व्यावहारिक पाठ। शून्य से गणना करने के नियम देने वाले पहले ब्रह्मगुप्त थे।
अगर हम वराहमिहिर को भी गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांतों का जनक न माने तो भी न्यूटन से पहले भारत के सन 598-670 के काल में महान ज्योतिषी ब्रह्मगुप्त थे। ब्रह्मगुप्त ज्योतिष शास्त्र के बहुत बड़े ज्ञाता तो थे ही साथ ही उन्हें गणित का भी बढ़िया ज्ञान था। ब्रह्मगुप्त की गिनती भारत के मशहूर ज्योतिषियों और गणितज्ञों में होती थी उन्होंने भी गुरुत्वाकर्षण के बारे में बताया था।
ब्रह्मगुप्त के अनुसार धरती गोल है और चीज़ों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
अगर हम न्यूटन के सिद्धांतों को पढ़े तो उसमे भी यही लिखा है की धरती आकर में गोल है। और अगर कोई भी चीज़ अगर ऊपर की ओर भी फेंकी जाय या कही से भी गिर जाय तो वो आखिर में नीचे की ओर इसलिए आती है क्योंकि धरती चीज़ों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
लेकिन उस समय लोगों ने उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया था क्योंकि सभी को गुरुत्वाकर्षण के बारे में महान खगोलविद वराहमिहिर पहले ही बता चुके थे। इससे ये पता चलता है की हमारे पूर्वजों ने सदियों पहले ही गुरुत्वाकर्षण की खोज कर ली थी
भाष्कराचार्य का गुरुत्वाकर्षण का नियम
गुरुत्वाकर्षण: “पिताजी, हम इस धरती पर किस पर रहते हैं?” लीलावती ने यह प्रश्न अपने पिता भास्कराचार्य से सदियों पहले पूछा था। इसके जवाब में भास्कराचार्य ने कहा, “लावती!, कुछ लोग जो कहते हैं कि यह पृथ्वी शेषनाग, कछुआ या हाथी या किसी अन्य वस्तु पर आधारित है, तो वे गलत हैं। भले ही यह मान लिया जाए कि यह किसी वस्तु पर आधारित है। यह टिकी हुई है, प्रश्न बना रहता है कि वह वस्तु किस पर टिकी है और इस प्रकार कारण का कारण और फिर उसका कारण… यदि यह क्रम जारी रहता है, तो न्यायशास्त्र में इसे अनावस्था दोष कहा जाता है।
लीलावती ने कहा, अभी भी प्रश्न बना हुआ है, पिता, पृथ्वी किस पर टिकी है? तब भास्कराचार्य ने कहा, हम क्यों नहीं मान सकते कि पृथ्वी किसी चीज पर आधारित नहीं है। यदि हम कहें कि पृथ्वी अपने ही बल द्वारा समर्थित है और इसे गुरुत्वाकर्षण बल कहते हैं, तो इसमें दोष क्या है? इस पर लीलावती ने पूछा कि यह कैसे संभव है? तब भास्कराचार्य इस सिद्धांत के बारे में कहते हैं कि चीजों की शक्ति बहुत अजीब है:-
मरुच्लो भूरचला स्वभावतो यतो
विचित्रावतवस्तु शक्त्य:॥ — सिद्धांतशिरोमणि, गोलाध्याय – भुवनकोश
आगे कहते हैं-
आकृष्टिशक्तिश्च मही तया यत् खस्थंगुरुस्वाभिमुखं स्वशक्तत्या।आकृष्यते तत्पततीव भातिसमेसमन्तात् क्व पतत्वियं खे॥ — सिद्धांतशिरोमणि गोलाध्याय – भुवनकोश
यानी पृथ्वी में आकर्षण की शक्ति है। पृथ्वी अपने आकर्षण बल से भारी वस्तुओं को अपनी ओर खींचती है और आकर्षण के कारण वे जमीन पर गिर जाती हैं। लेकिन जब आकाश में चारों ओर से एक ही बल दिखाई दे, तो कोई कैसे गिर सकता है? अर्थात ग्रह आकाश में गतिहीन रहते हैं क्योंकि विभिन्न ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण बल संतुलन बनाए रखते हैं।
गुरुत्वाकर्षण की खोज किसने की?
जैसा कि हमे अपने पाठ्यपुस्तकों मे पढ़ाया जाता है कि गुरुत्वाकर्षण कि खोज आइजक न्यूटन ने कि तथा उन्होंने इसकि सही परिभाषा तथा नियम भी दिए, जिन्हे सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियम कहते है । दो कणों के बीच कार्य करनेवाला आकर्षण बल उन कणों की संहतियों के गुणनफल का (प्रत्यक्ष) समानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग का व्युत्क्रमानुपाती होता है।
कणों के बीच कार्य करनेवाले पारस्परिक आकर्षण को गुरुत्वाकर्षण (Gravitation) तथा उससे उत्पन्न बल को गुरुत्वाकर्षण बल (Force of Gravitation) कहा जाता है। न्यूटन द्वारा प्रतिपादित उपर्युक्त नियम को न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियम (Law of Gravitation) कहते हैं। कभी-कभी इस नियम को “गुरुत्वाकर्षण का प्रतिलोम वर्ग नियम” (Inverse Square Law) भी कहा जाता है।
उपर्युक्त नियम को सूत्र रूप में इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है : मान लिया m1 और m2 संहति वाले दो पिंड परस्पर r दूरी पर स्थित हैं। उनके बीच कार्य करनेवाले बल F का मान होगा :
F = G m1 m2/r²
यहाँ G एक समानुपाती नियतांक है जिसका मान सभी पदार्थों के लिए एक जैसा रहता है। इसे गुरुत्वीय स्थिरांक (Gravitational Constant) कहते हैं। इस नियतांक की विमा (dimension) है और आंकिक मान प्रयुक्त इकाई पर निर्भर करता है। सूत्र (१) द्वारा किसी पिंड पर पृथ्वी के कारण लगनेवाले आकर्षण बल की गणना की जा सकती है।
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आज आपने क्या सीखा?
तो दोस्तों आज हमने आपको इसकि पूरी जानकारी दी कि गुरुत्वाकर्षण की खोज किसने की ? अगर आपको इसमे भी कोई परेशानी है तो कृपया हमे कमेन्ट करें हम जल्द से जल्द इसे अपडेट करेंगे । अगर आपको लगता है कि यह लेख ज्ञानवर्धक है तो कृपया इसे शेयर करें ।
वराहमिहीर